ग़ज़ल
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गुलों में खुशबू हूँ भरने दे मुझे
टूटकर अब तो विखरने दे मुझे
फिज़ां में सख़्त सियासत है अभी
सुकूँन में हवा से गुज़रने दे मुझे
दूर बैठा मज़लूम बहुत है भूखा
हलक़ में ख़ुद के उतरने दे मुझे
रौंदा इक तितली को दरिन्दे ने
बनके आँखों से लहू झरने दे मुझे
मुझमें मज़हब का तिज़ारत न देख
‘महज’ इंसां हूँ ख़ुदा से डरने दे मुझे