* ग़ज़ल * ( ताजमहल बनाते रहना )
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* ग़ज़ल *( ताजमहल बनाते रहना )
किताब ए इश्क़ का हर्फ़ बन जाऊँ मैं ।
रोज़ अपने लबों पर… सजाते रहना ।।
मैंने खायी है… क़सम रूठ जाने की ।
तुम शाम ओ सहर मुझे मनाते रहना ।।
ये मरासिम तो दिल से दिल का है ।
बेशर्त इसे… ताउम्र निभाते रहना ।।
जीते जी करना.. भले ही बेवफ़ाई मुझसे ।
बाद रूख़सती के ताजमहल बनाते रहना ।।
बिजलियाँ हिज्र की गिर जाये मुझ पर ‘ काज़ी ‘ ।
ख़्वाब वस्ल के… इन आँखों को दिखाते रहना ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी
©काज़ीकीक़लम
28/3/2 , अहिल्या पल्टन , इंदौर , मध्यप्रदेश
भ्रमणभाष – 6260232309