गले लोकतंत्र के नंगे / मुसाफ़िर बैठा
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राजनीति में पार्टी
एक समुच्चय है आदमी का
लोकतंत्र के नाम पर
निहित स्वार्थों में अटता बंटता हित समूह
विकसनशील समाज की, कानों से देखने वाले और आंखों से सुनने वाले समाज की
मूल कमजोर नस पकड़
उसके अनुरूप एक पार्टी
अपने जन्म से लेकर आज तक
नंगा होकर चल रही है,
चल रही है बेशर्म होकर नंगा
बाकी पार्टियां
उसकी नंगई तले तबाह हैं!
आदमी समुच्चय में भी
आजन्म नंगा रह जाए
उसके असभ्य होने से अधिक यह
लोकतंत्र के पड़ने और
लोकतंत्र से गले होने की निशानी है!