गम्भीर हवाओं का रुख है

दुनिया में क्यों दुख ही दुख है
हाय! कहाँ लुप्त हुआ सुख है
नाव घिरे ना भंवर में मित्रो
गम्भीर हवाओं का रुख है
दिन रैन जले है विरह अगन
देखा ना सजनी का मुख है
मालूम नहीं किस कारण से
मुझसे मेरा यार विमुख है
***
दुनिया में क्यों दुख ही दुख है
हाय! कहाँ लुप्त हुआ सुख है
नाव घिरे ना भंवर में मित्रो
गम्भीर हवाओं का रुख है
दिन रैन जले है विरह अगन
देखा ना सजनी का मुख है
मालूम नहीं किस कारण से
मुझसे मेरा यार विमुख है
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