क्यों नहीं बदल सका मैं, यह शौक अपना

क्यों नहीं बदल सका मैं, आज भी यह शौक अपना।
आज भी आदत है मेरी, नगमें जिंदगी के लिखना।।
क्यों नहीं बदल सका मैं——————।।
बात ऐसी भी नहीं है, मैं सबसे हूँ बेखबर।
मैं नशे में रहता है, मुझपे नहीं कोई असर।।
किसका है मुझको इंतजार, देखता हूँ किसका सपना।
क्यों नहीं बदल सका मैं——————।।
कोशिश मैंने यह भी की है, तोड़ दूँ मैं यह शीशा।
क्यों मरूं उसके लिए मैं, जिससे नहीं कोई आशा।।
देखता हूँ फिर भी क्यों मैं, समझकर आईना अपना।
क्यों नहीं बदल सका मैं—————–।।
मुझको नहीं है मालूम, इसका क्या होगा अंजाम।
सवेरा वह कब होगा, होगा कब किस्सा तमाम।।
कौन है वह परदे में, दीदार जिसका है मुझको करना।
क्यों नहीं बदल सका मैं——————।।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)