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21 Jan 2017 · 2 min read

क्यों ऐसा?

क्यों ऐसा ?
विश्वा जल्दी से अपनी कंपनी की बस से उतरती हुई घर के कम्पाउंड में दाखिल हुई ।बाहर ही उसकी सर्वेंट मिली ,
“भाभीजी ,आपके ननंद और नंदोईजी आये हुए है और मांजी बारबार घडी देख रही है,मुझे तो आज जल्दी जाना है ”
” मुझे फोन आया लेकिन मुझे भी आज का काम ख़तम करके देना था ”
घर में दाखिल होते ही सब से मिलकर थोड़ी बातें की और रसोई की तैयारी में लग गई। .ननंद तो उनकी किसी सहेली के साथ शॉपिंग पर निकल गई थी।काफी स्ट्रिक्ट स्वभाववाली विश्वा की सास थोड़े समय मुँह फुलाकर बैठी रही ।कुछ भी हो जाऐ, खाना रेडी करके टेबल पर रख दे, वैसा भी नहीं चलता।रोज़ भी सबको खुद ही परोसना वगैराह नियम बनाकर रखे थे और उसका पति भी ऐसा ही आग्रह रखता था।
खाना तैयार करके टेबल पर रखा इतने में उसकी ननंद भी आ गयी और सब ने मिलकर डिनर लिया ।बैठकर बातें कर रहे थे की विष्वा की सास की किसी सहेली का फोन आया और वो कहने लगी ,
“अरे ,आज तो मेरी बेटी स्वाला आयी हुई है ,हां हां ,बहोत अच्छा ससुराल है उसका और हमारे जमाई आलोक तो इतने मोर्डन स्वभाव के है ,वो तो सब खुद मैनेज कर लेते है ,मेरी बेटी तो संगीत क्लास और अपनी सॉशीयल एक्टिविटी में बिज़ी रहती है ,”
और ये सुनकर उसके ननंद और ससुरजी विश्वा के सामने देखने लगे ।विश्वा के स्मित के साथ छलकते दर्द को वो बखूबी समाज गए थे।
वाह ..ये नाजुक से संवेदनशील रिश्ते और विश्वा की सास की ये दोहरी सोच ।

-मनिषा जोबन देसाई

Language: Hindi
Tag: लघु कथा
1 Like · 296 Views

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