Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Sep 2019 · 5 min read

क्या यह महज संयोग था या कुछ और…. (3)

3. क्या यह महज संयोग था या कुछ और…?

हमारे रोजमर्रा के जीवन में कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएँ घटती हैं, जो अजीबोगरीब और अविश्वसनीय लगती हैं। मेरे साथ भी कई बार ऐसी घटनाएँ घटी हैं, जो लगती अविश्वसनीय हैं, परंतु हैं एकदम सच्ची।
सामान्यतः मैं कभी-कभार ही अपनी मोटर साइकिल पर किसी अपरिचित व्यक्ति को लिफ्ट देता हूँ, परंतु कई बार ऐसा भी हुआ है कि किसी अदृश्य शक्ति के वशीभूत होकर मैंने अपरिचित लोगों को लिफ्ट दी और इस बहाने कुछ अच्छा कार्य करने की खूबसूरत यादें संजो लीं।
‘क्या यह महज संयोग था या कुछ और…?’ श्रृंखला में मैं ऐसी ही कुछ घटनाओं का जिक्र करूँगा, जब मेरे माध्यम से कुछ अच्छा काम संपन्न हुआ।
सन् 2010 में एस.बी.आई. प्रोबेशनरी ऑफिसर की परीक्षा दिलाने के लिए मेरी साली रोशनी आई हुई थी। परीक्षा केंद्र मेरे निवास स्थान से लगभग छह किलोमीटर दूर कबीर नगर स्थित एक प्राईवेट इंजीनियरिंग कॉलेज में था। समय सुबह 8 बजे से था। प्रवेश पत्र के विववरणानुसार आधा घंटा पहले अर्थात् साढ़े सात बजे तक कक्ष में उपस्थिति देना अनिवार्य था।
मेरा स्वभाव है कि परीक्षा और बस या ट्रेन की यात्रा में कोई भी रिस्क नहीं लेता और इसीलिए निर्धारित समय (साढ़े सात बजे) से लगभग आधा घंटा पहले ही रोशनी को इक्जाम सेंटर में छोड़ दिया।
घर में श्रीमती जी को यह बताकर आया था कि फिलहाल कबीर नगर में रह रहे मेरे गृहग्राम के भैया अनंत राम प्रधान जी से मिलते हुए आऊँगा। आने में देर हो सकती है।
परंतु पता नहीं क्यों रोशनी को परीक्षा केंद्र में छोड़ने के बाद मैं सीधे घर की ओर लौटने लगा। जब मैं कबीर नगर रेलवे फाटक के पास पहुंचा, तो देखा कि लगभग 22-23 साल की एक लड़की और 15-16 का लड़का, जो प्रथम दृष्टया ही भाई-बहन लग रहे थे, दौड़ते हुए आ रहे थे। मुझे समझते हुए देर नहीं लगी कि लड़की भी परीक्षा देने जा रही है। घड़ी देखा, अब उनके पास इतना समय नहीं था कि दौड़कर परीक्षा केंद्र समय पर पहुँच सके। मैंने अपनी स्कूटी तुरंत यू-टर्न की। उनसे कहा कि “पीछे बैठ जाओ, दौड़कर समय पर परीक्षा केंद्र में नहीं पहुंच सकते।”
लड़के ने कहा, “भैया, आप दीदी को परीक्षा केंद्र छोड़ दीजिए। मैं धीरे-धीरे पैदल ही आ जाऊँगा।”
मैंने कहा, “बातें मत करो, दोनों भाई-बहन बैठ जाओ। मैं छोड़ दूँगा। सामने कोई पुलिस वाला नहीं है। इसलिए तीन सवारी के जुर्माने का भी डर नहीं है।”
दोनों भाई-बहन बैठ गए। रास्ते में उन्होंने बताया कि वे बिलासपुर जिले के रहने वाले हैं। एक दिन पहले ही रायपुर आकर स्टेशन के पास ठहरे हैं। प्रवेश पत्र में स्पष्ट एड्रेस नहीं होने से वे स्टेशन से सिटीबस से आकर कबीर नगर बस स्टैंड में ही उतर गए। (तब सुबह-सुबह उस क्षेत्र में कोई भी आटो या रिक्शा मिलना लगभग असंभव था।) वहाँ जब किसी ठेले वाले से परीक्षा केंद्र का पता पूछा, तो तीन किलोमीटर दूर सुनकर उनके होश फाख्ता हो गए। अब दौड़ लगाने के अलावा और कोई विकल्प भी नहीं था।
खैर, मैंने उन्हें परीक्षा केंद्र में समय से पहले ही छोड़ दिया।
जिंदगी में पहली बार रायपुर महानगर में ट्रैफिक रूल्स तोड़ा, पर कोई गम नहीं।
इस बार अनंत भैया के घर जाना भी नहीं भूला। छुट्टी का दिन था। तीन घंटे खूब गपियाने के बाद परीक्षा खत्म होने के बाद अपनी साली को लेकर घर लौटा।
लगभग दो साल बाद दीपावली पर मेरा सपरिवार रायगढ़ जाना हुआ। सामान्यतः मैं जन शताब्दी एक्सप्रेस से ही आता-जाता हूँ। त्योहारी सीजन होने से ट्रैन तो दूर, प्लेटफार्म भी खचाखच भरा हुआ था। तब जनशताब्दी एक्सप्रेस के रिजर्वेशन में आजकल की भांति सीट एलाटमेंट का सिस्टम नहीं था। सो बहुत ही मुश्किल से अपने पाँच साल के बेटे को गोद में उठाकर ट्रेन के अंदर घुसा। श्रीमती जी बैग पकड़े हुए एक कोने में खड़ी थी। ट्रेन में कुछ लोग सीटों पर अपना बैग वगेरह रखकर ”इसमें सवारी हैं। बाथरूम या नीचे गए हैं।” कहते हुए जाम रखे थे।
जब से मैं ट्रेन के अंदर घुसा एक 17-18 साल का नौजवान ‘सर, सर।’ लगातार चिल्ला रहा था। 5-6 बाद वह मेरे पास आया और नमस्ते करने के बाद बोला, “आपको कब से सर-सर बोलकर बुला रहा हूँ। आप हैं कि सुन ही रहे हैं। आइए, सामने सीट है।”
मैंने कहा, “बेटा, मैं तो खड़े खड़े ही चला जाऊँगा। ये मेरी पत्नी हैं। इन्हें सीट दे दो। बच्चे को लेकर बैठ जाएगी।”
उसने कहा, “आप आइए तो सही। दोनों के लिए सीट की व्यवस्था हो जाएगी।”
हम उसके पीछे-पीछे भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़े। वह सीट से सामान हटाकर हमें बिठाया और खुद बगल में खड़ा हो गया। मैंने कहा, “अरे, आप तो खड़े हैं।”
वह बोला, “सर मैं दुर्ग से ही बैठे बैठे ही आ रहा हूँ। सामने बैठे अंकल अगले स्टेशन भाटापारा में उतर जाएँगे। तब मुझे भी बैठने के लिए सीट मिल जाएगी। सर, आप शायद मुझे पहचान नहीं रहे हैं ?”
मैं असमंजस में था। बारह साल शिक्षक रहा था। हजारों बच्चों को पढ़ाया था। बच्चे तो बड़े हो जाते हैं। ऐसे में शिक्षक के लिए सभी बच्चों को पहचान सकना मुश्किल होता है। फिर भी बोला, “शायद तुम मेरे स्टूडेंट रहे हो। नाम तो याद नहीं आ रहा है बेटा।”
वह बोला, “नहीं सर। मैं आपका स्टूडेंट नहीं हूँ। पर आप हमारे पूरे परिवार के लिए ईश्वर से कम नहीं हैं। आपकी वजह से ही मेरी दीदी आज एसबीआई में प्रोबेशनरी ऑफिसर हैं। दो-तीन साल पहले यदि आप हमें इक्जाम सेंटर तक नहीं पहुँचाए होते तो शायद…. दीदी की पोस्टिंग दुर्ग में ही है। मैं वहीं से आ रहा हूँ।”
नजरों के सामने पूरा घटनाक्रम तैर गया। मन खुशी से झूम उठा। बस मुँह से निकल गया, “ईश्वर की लीला अपरंपार है। अपनी दीदी को हमारी बधाई दे देना।”
उसने आग्रहपूर्वक उनसे बात ही करा दी।
ट्रैन बिलासपुर में रूकी। वह हमसे विदा लेकर उतर गया। पाँच मिनट के भीतर आधा-आधा किलो की मिठाई के दो पैकेट लाकर हमें देते हुए बोला, “सर मुँह मीठा कराना तो बनता ही है।”
मुझे लगता है कि शायद उन दोनों भाई-बहन की थोड़ी-सी मदद के लिए ही मैं उस दिन सुबह अनंत भैया के घर न जाकर अपने घर लौट रहा था, जहाँ उनसे मेरी मुलाकात हो गई।
खैर, वजह चाहे कुछ भी हो, मुझे बहुत संतोष है कि मैं उस दिन कुछ अच्छा काम किया था, जिसका परिणाम भी मेरे सामने था।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायगढ़, छत्तीसगढ़

336 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
2705.*पूर्णिका*
2705.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
“ बधाई आ शुभकामना “
“ बधाई आ शुभकामना “
DrLakshman Jha Parimal
बहुत उपयोगी जानकारी :-
बहुत उपयोगी जानकारी :-
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
आपस की गलतफहमियों को काटते चलो।
आपस की गलतफहमियों को काटते चलो।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
*मेरा आसमां*
*मेरा आसमां*
DR ARUN KUMAR SHASTRI
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
हमने किस्मत से आँखें लड़ाई मगर
VINOD CHAUHAN
ग़ज़ल
ग़ज़ल
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की बच्चा विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
*वर्ष दो हजार इक्कीस (छोटी कहानी))*
*वर्ष दो हजार इक्कीस (छोटी कहानी))*
Ravi Prakash
चेहरे के भाव
चेहरे के भाव
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
पहली बारिश मेरे शहर की-
पहली बारिश मेरे शहर की-
Dr Mukesh 'Aseemit'
बस यूँ ही...
बस यूँ ही...
Neelam Sharma
"इच्छाशक्ति"
Dr. Kishan tandon kranti
मतदान 93 सीटों पर हो रहा है और बिकाऊ मीडिया एक जगह झुंड बना
मतदान 93 सीटों पर हो रहा है और बिकाऊ मीडिया एक जगह झुंड बना
*प्रणय प्रभात*
कान में रखना
कान में रखना
Kanchan verma
प्यार के ढाई अक्षर
प्यार के ढाई अक्षर
Juhi Grover
कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते...
कुछ लोग यूँ ही बदनाम नहीं होते...
मनोज कर्ण
बरसात
बरसात
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
मेरा घर
मेरा घर
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
खड़ा रेत पर नदी मुहाने...
खड़ा रेत पर नदी मुहाने...
डॉ.सीमा अग्रवाल
गुरूर चाँद का
गुरूर चाँद का
Satish Srijan
देश आज 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा,
देश आज 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा,
पूर्वार्थ
दोहा
दोहा
sushil sarna
है जरूरी हो रहे
है जरूरी हो रहे
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
गज़ल (राखी)
गज़ल (राखी)
umesh mehra
स्वप्न लोक के वासी भी जगते- सोते हैं।
स्वप्न लोक के वासी भी जगते- सोते हैं।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
तुम्हारे बिन कहां मुझको कभी अब चैन आएगा।
तुम्हारे बिन कहां मुझको कभी अब चैन आएगा।
सत्य कुमार प्रेमी
मुझे मुहब्बत सिखाते जाते
मुझे मुहब्बत सिखाते जाते
Monika Arora
एक पति पत्नी भी बिलकुल बीजेपी और कांग्रेस जैसे होते है
एक पति पत्नी भी बिलकुल बीजेपी और कांग्रेस जैसे होते है
शेखर सिंह
हिंसा न करने का उथला दावा तथा उतावला और अनियंत्रित नशा एक व्
हिंसा न करने का उथला दावा तथा उतावला और अनियंत्रित नशा एक व्
Dr MusafiR BaithA
Loading...