कोई पत्ता कब खुशी से अपनी पेड़ से अलग हुआ है

कोई पत्ता कब खुशी से अपनी पेड़ से अलग हुआ है
मजबूर होकर ही कोई अपने अपनों से जुदा हुआ है
जिसको थोड़ी सी हसरत दी है , जमाने ने यहाँ
वह ही अपनी नजर में आजकल खुदा हुआ है
कवि दीपक सरल
कोई पत्ता कब खुशी से अपनी पेड़ से अलग हुआ है
मजबूर होकर ही कोई अपने अपनों से जुदा हुआ है
जिसको थोड़ी सी हसरत दी है , जमाने ने यहाँ
वह ही अपनी नजर में आजकल खुदा हुआ है
कवि दीपक सरल