*कुर्सी* 【कुंडलिया】

*कुर्सी* 【कुंडलिया】
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रहती कुर्सी कब सदा , कुर्सी के दिन चार
आता जब दिन पाँचवा , होता बंटाधार
होता बंटाधार , हाय औंधे मुँह गिरते
पैदल हो लाचार , अंगरक्षक – बिन फिरते
कहते रवि कविराय,काल-गति यह ही कहती
किसी एक के पास , सदा कुर्सी कब रहती
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर ( उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99976 15451