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14 Feb 2017 · 2 min read

कुछ बच्चों के बचपन कहाँ होते हैं।

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कुछ बच्चों के बचपन कहाँ होते हैं।
इनका बचपन तो
दुर्भाग्य के आगे घुटने टेके होते हैं।
जिम्मेदारी की बोझ से दबे होते हैं।
ये समय से पहले ही बडे़ होते हैं।

हाथ में झाड़ू और पोछा,
माजने को ढ़ेर सारे बरतन होते है।
झूठन साफ करता ,मेज पोछता,
जरा सी गलती पर गाली खा रहे होते हैं।

पेट में आग भूख की ,
कचड़े के डब्बे में
कुछ खाने का सामान ढूढ रहे होतेे हैं।
झपट कर छिन लेने को ,
कुत्ते भी तैयार खड़े होते हैं।

नाज-नखरा ,फरमाईसें कहाँ,
बस एक रोटी की चाह होते हैं।
आँख में आँसू लिए मासुम सा चेहरा,
छुप-छुप कर ये ना जाने कितना रोते हैं।

माँ बाहर काम करती है,तो
घर की सारी जिम्मेदारी इनके सर होते हैं।
आँखों में छोटे -छोटे सपने ,
मर जाती है सारी ,कहाँ पूरे होते हैं।

कहाँ नसीब होती है,माँ की लोरी,
उनके ऊपर
छोटे भाई -बहन की जिम्मेदरी होते हैं।
बचपन में ही बिना
जन्म दिये माँ -पिता बन गये होते हैं।

स्कूल-बस्ते कहाँ नसीब इनको ,
किसी खेत में मजदूरी कर रहे होते हैं।
हाथ में छेनी और हथौड़े,
इनके सारे सपने,
हर चोट पर दम तोड़ रहे होते हैं।

जीवन की हर जरूरी समान के लिए
इनका बचपन कुर्बान होते हैं।
किताबों की जगह रद्दी का बोझ ढो रहे होते हैं।
अपने हालातों से लड़ रहें होते हैं।
इनका बचपन
किस्मत की राख में दबे होते हैं।

खेल-कूद ,स्कूल से दूर होते हैं।
इनके भाग्य विधाता बड़े क्रूर होते हैं।
भीख मागते,बोझा ढोते,
गंदे मटमैलै चिथड़े में लिपटे होते हैं।
इनकी जिन्दगी कठिनाईयों से भरे होते हैं।

किसी से घृणा,किसी से करूणा पाते हैं।
तो कोई अमीरों के ठोकर में बड़े होते हैं।
किस्मत का मारा हालात से मजबूर होते हैं।
ये नन्हा छोटा सा बाल मजदूर होते हैं।
???????
?लक्ष्मी सिंह ?

Language: Hindi
Tag: कविता
609 Views

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