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29 Sep 2016 · 1 min read

कुंडलिया

“कुंडलिया”

मानव के मन में बसी, मानवता की चाह
दानव की दानत रही, कलुष कुटिलता आह
कलुष कुटिलता आह, मुग्ध पाजी पाखंडी
वंश वेलि गुमराह, कर खल नराधम दंडी
कह गौतम चितलाय, पाक में घर घर दानव
भारत राह दिखाय, बनो मत बैरी मानव।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

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