“किस्सा मशहूर है जमाने में मेरा”
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किस्सा मशहूर है जमाने में मेरा
मैं जी गया किसी पे मरकर
तबाह कर ली जिंदगी मैंने
एक हसीना के इश्क़ में पढ़कर
चाहत एकतरफा रही मेरी
वो गुजरते मेरी गलियों से बचकर
मैं देखता रहता जाते हुवे
उसने ना देखा पीछे से पलटकर
अब भी इन्तजार करते है “राणाजी”
कभी वो भी देखे इस आग में जलकर
©ठाकुर प्रतापसिंह राणाजी
सनावद (मध्यप्रदेश)