Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 Jan 2024 · 2 min read

किस्मत भी न जाने क्यों…

हमने तुमको दिल दिया, तुमने आँसू-भार।
प्रेम-समर में पाँव रख, पायी हमने हार।
बनते-बनते काम में, देती पलटी मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।

शब्द हृदय पर यूँ लगे, जैसे असि की धार।
चटक गया दिल काँच सा, टुकड़े हुए हजार।
टूटे दिल का कर रहे, आँसू से उपचार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

ख्वाब अधूरे ही लिए, लिए बुझे अरमान।
गम को सीने से लगा, लौटे पी अपमान।।
ठोकर खायी बीच में, पड़ी वक्त की मार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जीवन विपदा से भरा, नहीं तनिक आराम।
आन फँसे मझधार में, तड़पें आठों याम।।
कैसे नौका पार हो, रूठा खेवनहार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

हाय ! घड़ी मनहूस में, लगा प्रेम का रोग।
योग मिलन का था नहीं, होना लिखा वियोग।।
चारों खाने चित गिरे, मिला नहीं आधार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

बाजी निकली हाथ से, हर पल मन में सोच।
दे आया कब कौन हा, जा उसको उत्कोच।।
हालत दिल की देखकर, रोते नौ-नौ धार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

जिससे मन की बात की, लगी उसी की टोक।
उस गलती का आज भी, मना रहे हम शोक।
राह न कोई सूझती, बंद दिखें सब द्वार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

आँसू की सौगात दे, छोड़ चले मझधार ।
यादें-तड़पन-करवटें, करते मिल सब वार।।
मन पर भारी बोझ है, आता नहीं करार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

दो गोलक में नैन के, सपने तिरें हजार।
कुछ होते साकार तो, कुछ हो जाते खार।।
मन का नाजुक आइना, चटके बारंबार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

साँस चले ज्यों धौंकनी, नैन चुएँ पतनार।
प्रोषितपतिका नार नित, जीती मन को मार।।
कैसे हो ‘सीमा’ मिलन, खड़ी बीच दीवार।
किस्मत भी न जाने क्यों, खाए रहती खार।।

© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र. )

1 Like · 74 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from डॉ.सीमा अग्रवाल
View all
You may also like:
अमृता प्रीतम
अमृता प्रीतम
Dr fauzia Naseem shad
प्रेम
प्रेम
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
गुस्सा दिलाकर ,
गुस्सा दिलाकर ,
Umender kumar
आप क्या समझते है जनाब
आप क्या समझते है जनाब
शेखर सिंह
बेरोजगारी मंहगायी की बातें सब दिन मैं ही  दुहराता हूँ,  फिरभ
बेरोजगारी मंहगायी की बातें सब दिन मैं ही दुहराता हूँ, फिरभ
DrLakshman Jha Parimal
चंद्रकक्षा में भेज रहें हैं।
चंद्रकक्षा में भेज रहें हैं।
Aruna Dogra Sharma
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
प्रभु के प्रति रहें कृतज्ञ
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
वक्त वक्त की बात है ,
वक्त वक्त की बात है ,
Yogendra Chaturwedi
गुम सूम क्यूँ बैठी हैं जरा ये अधर अपने अलग कीजिए ,
गुम सूम क्यूँ बैठी हैं जरा ये अधर अपने अलग कीजिए ,
Chahat
*सीमा की जो कर रहे, रक्षा उन्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
*सीमा की जो कर रहे, रक्षा उन्हें प्रणाम (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
जो वक्त से आगे चलते हैं, अक्सर लोग उनके पीछे चलते हैं।।
जो वक्त से आगे चलते हैं, अक्सर लोग उनके पीछे चलते हैं।।
Lokesh Sharma
नैया फसी मैया है बीच भवर
नैया फसी मैया है बीच भवर
Basant Bhagawan Roy
रात
रात
sushil sarna
बच्चे ही मां बाप की दुनियां होते हैं।
बच्चे ही मां बाप की दुनियां होते हैं।
सत्य कुमार प्रेमी
Dr Arun Kumar shastri
Dr Arun Kumar shastri
DR ARUN KUMAR SHASTRI
ख़ुद को हमारी नज़रों में तलाशते हैं,
ख़ुद को हमारी नज़रों में तलाशते हैं,
ओसमणी साहू 'ओश'
*वो एक वादा ,जो तूने किया था ,क्या हुआ उसका*
*वो एक वादा ,जो तूने किया था ,क्या हुआ उसका*
sudhir kumar
फितरत इंसान की....
फितरत इंसान की....
Tarun Singh Pawar
हिंदीग़ज़ल की गटर-गंगा *रमेशराज
हिंदीग़ज़ल की गटर-गंगा *रमेशराज
कवि रमेशराज
बिटिया  घर  की  ससुराल  चली, मन  में सब संशय पाल रहे।
बिटिया घर की ससुराल चली, मन में सब संशय पाल रहे।
संजीव शुक्ल 'सचिन'
एक ख्वाब सजाया था मैंने तुमको सोचकर
एक ख्वाब सजाया था मैंने तुमको सोचकर
डॉ. दीपक मेवाती
"अजीब दस्तूर"
Dr. Kishan tandon kranti
बाल कविता: मुन्नी की मटकी
बाल कविता: मुन्नी की मटकी
Rajesh Kumar Arjun
******गणेश-चतुर्थी*******
******गणेश-चतुर्थी*******
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
*शुभ रात्रि हो सबकी*
*शुभ रात्रि हो सबकी*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
जीवन
जीवन
Bodhisatva kastooriya
भूल जा वह जो कल किया
भूल जा वह जो कल किया
gurudeenverma198
मुद्दत से तेरे शहर में आना नहीं हुआ
मुद्दत से तेरे शहर में आना नहीं हुआ
Shweta Soni
सड़कों पर दौड़ रही है मोटर साइकिलें, अनगिनत कार।
सड़कों पर दौड़ रही है मोटर साइकिलें, अनगिनत कार।
Tushar Jagawat
जमाने के रंगों में मैं अब यूॅ॑ ढ़लने लगा हूॅ॑
जमाने के रंगों में मैं अब यूॅ॑ ढ़लने लगा हूॅ॑
VINOD CHAUHAN
Loading...