कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/ddd2bae3ea596e08289ddc35d18ce3a2_9da83cbf2c8f1fb10c086b267ba7d390_600.jpg)
कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
गुनाहों की वतन में जंजीर सी बन गई है ।
इस निजाम को तो शर्म आती नहीं ,
हमें अब सुनने की आदत सी पड़ गई है ।
कितनी बार शर्मिंदा हुआ जाए,
गुनाहों की वतन में जंजीर सी बन गई है ।
इस निजाम को तो शर्म आती नहीं ,
हमें अब सुनने की आदत सी पड़ गई है ।