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8 Feb 2023 · 1 min read

कहाँ समझते हैं ……….

कोई समझता है सारे कहाँ समझते हैं
तमाम लोग इशारे कहाँ समझते हैं

हम ऐसे लोगों से पूछो मक़ाम की क़ीमत
जिन्हें मिले हों सहारे कहाँ समझते हैं

किसी के इश्क़ में बहती नदी की मजबूरी
शदीद प्यास के मारे कहाँ समझते हैं

न जाने कौन सा लम्हा ज़मीं पे ले आये
फ़लक पे झूमते तारे कहाँ समझते हैं

बस इतना सोच के कश्ती में भर लिया पानी
नदी का दर्द किनारे कहाँ समझते हैं

सुलगते सहरा में भटका हुआ मुसाफ़िर हूँ
मुझे चमन के नज़ारे कहाँ समझते हैं
~Aadarsh Dubey

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