कहमुकरी
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कहमुकरी
आगबबूला सदा वह रहता।
पारा दिन भर चढ़ा ही रहता।
गरम मिजाज, हठीला ठेठ,
क्या सखि साजन ! ना सखि जेठ।
© सीमा अग्रवाल
कहमुकरी
आगबबूला सदा वह रहता।
पारा दिन भर चढ़ा ही रहता।
गरम मिजाज, हठीला ठेठ,
क्या सखि साजन ! ना सखि जेठ।
© सीमा अग्रवाल