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10 Oct 2022 · 3 min read

*कर-कमल (व्यंग्य)*

*कर-कमल (व्यंग्य)*
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प्रकाशन तिथि: अमर उजाला 22-7-1990
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अमर उजाला में “कर-कमल” नामक लेख व्यंग्य लेख 22- 7 -1990 को प्रकाशित हुआ था । इस पर ₹50 पारिश्रमिक अमर उजाला द्वारा दिया गया था । लेख की प्रासंगिकता अभी भी कम नहीं हुई है। प्रस्तुत है व्यंग्य “कर-कमल”( लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर ,उत्तर प्रदेश, मोबाइल 99976 15451)
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*कर-कमल*

हाथों की तारीफ में जो शब्द इस्तेमाल किया
जाता है, कोमल हैं, गुलाबी हैं, मतवाले
हैं, दिलवाले हैं। प्रेमिका के हाथों को कर-कमल कहना चाहिए, जिसने आपका दिल छीना हो उसके हाथों में हाथ डालकर कर-कमल कहने में खूबसूरती है। कविता में कर-कमल अच्छा लगेगा कि विश्वामित्र ने उमंग में भरकर पकड़ा मेनका का
कर-कमल। यूं फूल हजारों हैं मगर करों की
किस्मत में कमल होना ही लिखा है। उन्हें
कर- गेंदा नहीं कहा जा सकता। किसी ने किसी को यह कहते नहीं सुना होगा कि किसी मैदा की लोई-सी सुन्दरी को किसी ने कहा हो कि प्रिय! अपने कर-चमेली से हमें अंगूठी पहनाओ।
कमल यद्यपि भारतीय जनता पार्टी का चुनाव-चिन्ह बन गया है और गुलाब हालाँकि जवाहर लाल नेहरू को प्रिय रहा है, तो भी कांग्रेसी बहुतायत से कर-कमल का प्रयोग कर रहे हैं । बल्कि कहना चाहिए कि कांग्रेसियों के हाथ क्योंकि वे सत्ता में हैं- इसलिए जरूरत से ज्यादा कर-कमल हो रहे हैं।
कर-कमलों के बिना काम नहीं चलता।
बिना इनके उद्घाटन ,समापन, विमोचन,
समर्पण, अर्पण नहीं निबट पाता। नेता प्रायः
अपने कर-कमल लिए घूमते रहते हैं। दिन भर हाथापाई की, शाम को संगीत-संध्या का उद्घाटन करने के लिए कर-कमल साथ लेकर पहुंच गये। नेताओं के हाथों को कर-कमल कहते आपको कैसा लगता है? कमल जैसा साफ-सुथरा ,बेदाग, चिकना, मनोहारी फूल, मोटी-मोटी मूंछो वाले खुरदुरे नेताओं के हाथों में पड़कर कर-कमलों में
बदलना ही क्या शेष रह गया था ? यह तो ऐसा ही है कि गेंडे से जो किसी समारोह में पुरस्कार-वितरण कराया जाये और शिष्टाचारवश कह दिया जाए कि यह पुरस्कार गेंडा जी के कर-कमलों से दिया जा रहा है।
अरे! कर कमल की पदावली में जो
कोमलता है, उसका तो ख्याल करना चाहिए। किसी कोमलांगना के हाथ से इस्तेमाल कर कोई काम करवाया जाये और उसमें कर-कमलों का प्रयोग किया जाए तो आनंद आता है। कर-कमल सुनकर जो मोहक चित्र बनता है, उसे नेताओं की मोटी, थुलथुल ,हाथी-सी बाहें बिल्कुल बिगाड़
देती हैं। पता चला कि नाम ले रहे हैं कर-कमल और हाथ मोटे-मोटे हैं और खादी के कुर्ते की बाँह से बाहर निकल कर आ रहे हैं।
कर-कमल माने कम से कम नेलपालिश लगे हाथ । कुछ गुलाबीपन, कुछ चिकनाहट, थोड़ी गर्माहट, मुलायमियत जो टपक-टपक पड़ रही हो। गुलाबी फीता काटकर उद्घाटन अगर कर-कमलों से ही किसी को कराना है, तो कम से कम हाथों का ध्यान तो करना चाहिए।
कार्ड छपवाते समय इतना विचार तो
करना ही चाहिए कि जिसके हाथों को कर-कमलबताया जाए, उसके हाथों के बारे में चार लोगों से मिलकर राय बना लेनी चाहिए कि भाईयों! कालू बाबू के हाथों को कर-कमल लिखवाने में आपकी क्या राय है ? जिन्हें हाथों में कैंची पकड़कर फोटो
खिंचाने का शौक है ,वह तो अपने हाथो को
कर-कमल कहेंगे, मगर सोचना तो अगले को है कि उन्हें क्या कहें। क्या दौर आया कि जिसका हाथ एक बार खादी के कुर्ते में घुस गया समझो परमानेंट कर कमल हो गया।(समाप्त)

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