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29 Oct 2022 · 1 min read

औरत की जगह

फूंक न डाले सिस्टम को
जो आग मेरी ग़ज़ल में है!
मानवता का हर क़ातिल
अब भी किसी महल में है!!
पता नहीं इतनी-सी बात
समझ इन्हें कब आएगी
औरत की जगह मर्द के
पैरों में नहीं, बगल में है!!
ऐसे ही नहीं इतनी सुर्ख़ी
आई इसकी पंखुड़ियों में
हमारे पूरे झील का ख़ून
आज इस एक कंवल में है!!
मुहब्बत के कारोबार में
अब उतना फायदा कहां
जितना ज़्यादा मुनाफा
नफ़रत की फ़सल में है!!
पुरानी पीढ़ियों ने हमको
बुरी तरह मायूस किया
थोड़ी-बहुत उम्मीद बची
अब अगली नसल में है!!
Shekhar Chandra Mitra
#इंकलाबीशायरी #स्त्रीविमर्श
#FeministPoetry

Language: Hindi
Tag: ग़ज़ल
2 Likes · 2 Comments · 92 Views
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