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2 Dec 2022 · 1 min read

“ऐनक मित्र”

“ऐनक मित्र”
पहले तो थी मैं साथी मात्र बुढ़ापे की
सबकी नाक पर चढ़के बैठ जाती थी
आवश्यकता महसूस होती बुढ़ापे में मेरी
ऐनक नाम से मैं तब पहचानी जाती थी,
जैसे जैसे उम्र बढ़ती, बढ़ती मेरी जरूरत
यही सब सोच सोचकर मैं इतरा जाती थी
डॉक्टर के पास जाते दादा आंख बनवाने
काले रंग की चश्मा तब पहनाई जाती थी,
तब तक बिठाए रखते थे मुझे आंखों पर
जब तक आंखे सही नहीं हो जाती थी
सही होते ही मुझे अजीब सा डर सताता
फेंके जाने के भय से मैं घबरा जाती थी,
मेरा अस्तित्व भी कचरे में बह गया तब
जब से आंख में दवाई डलनी बंद हुई थी
बच्चों का खिलौना बन कर रह गई मैं तो
ऐनक मित्र के नाम से कभी जानी जाती थी।

Language: Hindi
Tag: कविता
1 Like · 55 Views

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