एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
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ग़ज़ल
2122/2122/2122/212
एक दिन जब वो अचानक सामने ही आ गए।
उनसे जब नजरें मिली तो देख कर शरमा गए।
दान दाता की तरह उनके ही चर्चे हैं बहुत,
छीन कर जो दाल रोटी मुफ़लिसों की खा गए।2
जाने कितनी झोपड़ी खाकर महल उनके बने,
घर आगे देख बुल्डोजर वहीं घबरा गए।3
कुर्सियों की दौड़ भी दिलचस्प ही होती गई,
ख्वाब में सोचे नहीं जो वो ही कुर्सी पा गए।4
इश्क की दुनियां का प्रेमी एक ही है है फलसफा,
प्यार वो करते हैं जो इक दूसरे को भा गए।5
………✍️ सत्य कुमार प्रेमी