एक इंतज़ार दीजिए नई गज़ल विनीत सिंह शायर के कलम से
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आँखों से अपनी यूँ ही शिकार कीजिए
हम गरीब लोग हैं हमें मार दीजिए
मरते हुए इंसान की ख़्वाइश है आख़िरी
इक बार लब से अपने पुकार दीजिए
आख़िरी सलाम में जलता हुआ ये ख़त
तोहफ़ा ये मुझे आप बार बार दीजिए
जीना हुआ मुश्किल उम्मीद के बगैर
आँखों को मेरी एक इंतज़ार दीजिए
किसी और से सही पर पूछा है मेरा हाल
परवर दिगार फिर मुझे बीमार कीजिए
~विनीत सिंह
Vinit Singh Shayar