Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
16 Feb 2024 · 1 min read

ऋतुराज

रिमझिम फुहारों के गुज़रते ही, शीत की लहर का आगमन हुआ।
शरद की बर्फीली हवाओं का, हर नगर व कस्बे तक भ्रमण हुआ।
शीत के ऐसे ज़ुल्म को देखकर, यहाँ फिज़ाओं में बवाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।

इस शीत ने अपनी निर्ममता से, जीव की इच्छाएँ सीमित कर दीं।
फिर से गर्म सूर्य को देखने की, सारी संभावनाऍं सीमित कर दीं।
जिस दिन पूरा सूरज दिखा, उस दिन लगा मानो कमाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।

शरद ऋतु की सुबह व शाम में, बहुत अधिक अंतर नहीं रहता है।
आँखें खुलीं तो सवेरा, बंद हुईं तो अंधेरा, हर कोई यही कहता है।
ये सूर्योदय है या सूर्यास्त, हर जन के मन में यही सवाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।

सैलानी शीत की स्तुति गाते हैं, जबकि कृषक भर्त्सना करता है।
क्योंकि ये एक मन में संतोष भरे, दूसरे मन में संवेदना भरता है।
शरद ऋतु अच्छी है या बुरी, ये प्रश्न एक उलझा ख़्याल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।

ऋतुऍं प्रकृति के बढ़ने का क्रम, इस बात का भान होना चाहिए।
प्रकृति जीव का जीवन है, तभी यथासंभव सम्मान होना चाहिए।
शरद को खुशी से विदाई मिली, ये तो स्वयं एक मिसाल हो गया।
ज़रा उठकर देख तो ऋतुराज, तेरा यौवन उमंग से लाल हो गया।

4 Likes · 94 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
View all
You may also like:
दरमियाँ
दरमियाँ
Dr. Rajeev Jain
आउट करें, गेट आउट करें
आउट करें, गेट आउट करें
Dr MusafiR BaithA
नृत्य किसी भी गीत और संस्कृति के बोल पर आधारित भावना से ओतप्
नृत्य किसी भी गीत और संस्कृति के बोल पर आधारित भावना से ओतप्
Rj Anand Prajapati
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/175.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
भर गया होगा
भर गया होगा
Dr fauzia Naseem shad
"चांद पे तिरंगा"
राकेश चौरसिया
गिरगिट
गिरगिट
Dr. Pradeep Kumar Sharma
ज़िंदगी चलती है
ज़िंदगी चलती है
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
राम भजन
राम भजन
आर.एस. 'प्रीतम'
.
.
Ragini Kumari
सुबह सुबह की चाय
सुबह सुबह की चाय
Neeraj Agarwal
मेरे हैं बस दो ख़ुदा
मेरे हैं बस दो ख़ुदा
The_dk_poetry
For a thought, you're eternity
For a thought, you're eternity
पूर्वार्थ
"एक उम्र के बाद"
Dr. Kishan tandon kranti
चरित्र राम है
चरित्र राम है
Sanjay ' शून्य'
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
बुंदेली दोहा- छला (अंगूठी)
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
हरे हैं ज़ख़्म सारे सब्र थोड़ा और कर ले दिल
Meenakshi Masoom
इंसान और कुता
इंसान और कुता
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
ना रहीम मानता हूँ मैं, ना ही राम मानता हूँ
ना रहीम मानता हूँ मैं, ना ही राम मानता हूँ
VINOD CHAUHAN
उम्र के हर पड़ाव पर
उम्र के हर पड़ाव पर
Surinder blackpen
"कलम की अभिलाषा"
Yogendra Chaturwedi
मित्रता दिवस पर एक खत दोस्तो के नाम
मित्रता दिवस पर एक खत दोस्तो के नाम
Ram Krishan Rastogi
हम चाहते हैं
हम चाहते हैं
Basant Bhagawan Roy
"वचन देती हूँ"
Ekta chitrangini
" यादों की शमा"
Pushpraj Anant
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
चंचल मन चित-चोर है , विचलित मन चंडाल।
Manoj Mahato
ईव्हीएम को रोने वाले अब वेलेट पेपर से भी नहीं जीत सकते। मतपत
ईव्हीएम को रोने वाले अब वेलेट पेपर से भी नहीं जीत सकते। मतपत
*प्रणय प्रभात*
उसी संघर्ष को रोजाना, हम सब दोहराते हैं (हिंदी गजल))
उसी संघर्ष को रोजाना, हम सब दोहराते हैं (हिंदी गजल))
Ravi Prakash
मानव और मशीनें
मानव और मशीनें
Mukesh Kumar Sonkar
तुम रूबरू भी
तुम रूबरू भी
हिमांशु Kulshrestha
Loading...