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21 Aug 2016 · 1 min read

इंतिज़ार

इंतिज़ार
आज फिर मेरी आँखें रौशन हुई
जब तेरी यादों के फ़ानूस जल उठे
कमरा भर गया……
तेरे अहसास की ख़ुशबू से
लगा तुम यहीं आस पास ही हो कहीं
सरगोशियाँ सुनाई देने लगी हर सूं
तहे-बाम कबूतरों का काफ़िला उतरा
लगा तेरे आने की खबर आ गयी जैसे
मिरा इन्तिज़ार बहने लगा आँखों से
चमकते मोतियों की सूरत में!!!
फिर आनन-फ़ानन में
सोचा
तुझे उन्वाँ बनाकर,
नज़्म ही कह दूँ कोई
पर लफ्ज़ ही नहीं मिलते
क़लम को मेरी,
शायद !!!
उसे भी है इन्तिज़ार तेरा
तू आये तो रूह मिले
मिरे लफ़्ज़ों को
अब आ भी जा मेरी हमनफ़स
बरसों के इंतिज़ार को राहत मिले
और मुक़म्मल हो मेरी ये नज़्म ….

नज़ीर नज़र

Language: Hindi
Tag: कविता
335 Views
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