* आ गया बसंत *
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** घनाक्षरी **
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पतझड़ विदा हुआ है आ गया बसंत काल,
खूब हरियाली चारों ओर देखो छा रही।
धुंध हो गई समाप्त शीत का थमा चलन,
गीत सुमधुर अति चिड़िया है गा रही।
कोंपलें सुकोमल है देखिए नयी नवेली,
छवियां अनेक प्रिय सामने हैं आ रही।
फूल मुस्कुरा उठे हैं कलियों के साथ साथ,
और प्रकृति स्वयं है खूब इठला रही।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/०३/२०२४