आप मे आपका नहीं कुछ भी
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इससे बढ़ कर समझ नहीं कुछ भी ।
आप में आपका नहीं कुछ भी ।।
कौन कब अलविदा कह जाए ।
ज़िन्दगी का यकीं नहीं कुछ भी ।।
ढूंढती हूं मैं आजकल खुद को ।
ख़ुद को ख़ुद का पता नहीं कुछ भी ।।
कितने टूटे हैं कितने बाकी हैं ।
बे!खबर हैं ख़बर नहीं कुछ भी ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद