आदमी खरीदने लगा है आदमी को ऐसे कि-
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/fdcf6f3af2ec80021eb94b86bce39ffe_0750086bd57afbd046cfa722f01b75fb_600.jpg)
आदमी खरीदने लगा है आदमी को ऐसे कि-
आदमियत की जैसे बाजार लगने लगी है
प्रेम व्यवहार में मिलावट ऐसे हो रहा है
प्यार और दोस्ती बेकार लगने लगी है
सौदेबाजी सारे ज़ज्बातों की यूँ हो रही है
मुस्कुराने की अदा उधार लगने लगी है