आज़माइश

आजमाईश कैसी ये हमारी यारब…
तुम समंदर हम दरिया
मिलन तो तुमसे ही होना था
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
या दरिया का खुद को खोना था
या उसे समंदर ही होना था।
अभी कुछ दिन पहले तक
जो तुम्हारा यार हुआ करता था
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
या वो इंसान बना रहता
या उसे हिन्दू मुसलमान होना था।
ज़ुबां अलग भी हो तो क्या
हर धर्म बोलता है एक ही वाणी
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
या तो हम सिर्फ धर्म ही पढ़ लेते
या वह गीता और कुरान होना था।
किसने बनाया था यह संसार
और किसने बांटा है ये संसार
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
भेद करने वाला रब नहीं था
बस एक इंसान का हैवान होना था
प्यास तो पानी की ही थी हर इंसान को
मीठा पानी खारा ना हो ,यही सोच में होना था
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
कि हमारे घरों में जाते ही
निर्मल जल का हिन्दू मुसलमान होना था।
साहिल तक पहुंचने का है सहारा
कश्ती वह कि जिसमें कोई छेद ना हो
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
कि कश्ती में छेद करने वाले को हैवान
और छेद बंद करने वाला कोई इंसान ही होना था।
सिर तो झुकाया था उसके दर पे हम सबने
भाव पूजा का या ईमान इबादत का होना था
फ़र्क सिर्फ़ एक सोच का है
सजदा ही तो कह दिया था ना
तो क्यों हिन्दू मुसलमान होना था
क्यों हिन्दू मुसलमान होना था…..!!!
© डॉ सीमा