आजकल मैं

आजकल मैं,
रहता हूँ गौणता लिए हुए जंगल में,
एक तपस्वी की भांति विचार मग्न,
संसार से विमुख बैरागी की तरह,
समाधि की मुद्रा में दूर अकेले।
आजकल मैं,
मनाता हूँ जश्न अकेले में ही,
अपने पुरानी चिठ्ठियों को जलाकर,
मनाता हूँ शौक अकेले में ही,
अपने आँसुओं को बहाकर।
आजकल मैं,
करने लगता हूँ याद उनको,
जिनसे कभी था मेरा रिश्ता,
एक परिवार की तरह,
और दिखाते थे मुझको,
अपनी दौलत का अहम,
सोचता हूँ उनको हराने के लिए।
आजकल मैं,
पढ़ता हूँ वो आये हुए सन्देश,
जो भेजे हैं मुझको परिचितों ने,
बनाकर मेरी नयी तस्वीर,
फैलाते हुए अपनी बाँहें,
उत्सुक हूँ उनको देखने के लिए।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)