आजकल / (नवगीत)
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खेत हँसियों से
कटते नहीं आजकल ।
रात बेगार-सी
दिन है भारी बहुत ।
चल रही भेद की
रोज़ आरी बहुत ।
फूल ख़ुशियों के
खिलते नहीं आजकल ।
हार्वेस्टर चले
और रीपर चले ।
पेट मजदूर का
आग जैसा जले ।
ज़ख्म-नासूर
भरते नहीं आजकल ।
बैल बेकार हैं
गाय भूखी बहुत ।
है नदी रोज़गारों
की सूखी बहुत ।
काम खोजे से
मिलते नहीं आजकल ।
मौथली है कुदाली
औ’ मृत फावड़े ।
स्वप्न मजदूर के
सब अधूरे पड़े ।
खड्ड पाटे से
पटते नहीं आजकल ।
०००
— ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी(रहली),सागर
मध्यप्रदेश-470227
मो.-8463884927