आकुल बसंत!
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आकुल बसंत, ले प्रीति सुगंध,
व्याकुल बसंत में, सजनी कंत।
दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद,
पगडंडि यौवन की, प्रीत अनंत।
कुहू- कुहू कोयल के मधुर छंद,
मधुर बोल,सजन से उर जीवंत।
पीले सुमनों का पीकर मकरंद,
मिलते क्षितिज पार हैं आदी-अंत।
नीलम शर्मा ✍️