आओ,
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आओ,
कि जिन्दगी
बेनूर, बेरंग हो चली है
कमी तेरी, बन के खिजां
हर सिम्त बिखर गई है
हमसफर मेरी,
तलबगार हूँ तेरी बाहों के सहारे का
बन के बूँद पानी की
आ, और
मुझ पर बिखर बिखर जा.
आओ,
कि जिन्दगी
बेनूर, बेरंग हो चली है
कमी तेरी, बन के खिजां
हर सिम्त बिखर गई है
हमसफर मेरी,
तलबगार हूँ तेरी बाहों के सहारे का
बन के बूँद पानी की
आ, और
मुझ पर बिखर बिखर जा.