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16 Aug 2022 · 1 min read

आइए रहमान भाई

आइए रहमान भाई

आइए रहमान भाई,
चाय पीते हैं |

बहुत दिन से सुन रहे हैं,
अब इधर आते नहीं हैं,
चौधरी के गाँव से होकर
कहीं जाते नहीं हैं,
जो हुआ सो हो गया,
बातें पुरानी छोड़ दें,
अब नए संबंध के
ओहार सीते हैं |

सोचिए हर दिन सुबह
सूरज निकलता है,
वायुमंडल की नमी पर
वो पिघलता है,
भूलकर मतभेद पिछले,
मित्रता की देहरी पर,
नया जीवन आज हम मिल-
बैठ जीते हैं |

चार धामों का बना है, जो
यहाँ परिवार अपना,
‘एक होकर हम रहें’ यह
देखते हैं सौम्य सपना,
दूरियाँ मन की हटाएँ,
मंच पर हम एक आएँ,
पात्र धैर्यों के भरें, जो
आज रीते हैं |

शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’
मेरठ

Language: Hindi
109 Views
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