आँखें उदास हैं – बस समय के पूर्णाअस्त की राह ही देखतीं हैं
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हाथों की झुर्रियां
आँखों का सूनापन
अपनों से या अपनों का
दर्द खामोशी से बताती हैं
समय की लकीरें
ललाट और चेहरे पे आती हैं
मुस्कुराने की कोशिश में
लकीरें और भी गहरी हो जातीं हैं
उनकी गहराई –
अनुभव का लेखा जोखा बतलाती हैं
शब्दों का शोर नहीं होता
बस खामोशी का सैलाब है
बस आँखें उदास हैं
जो बस समय के
पूर्णाअस्त की राह ही देखतीं हैं