अपने ही हाथों से अपना, जिगर जलाए बैठे हैं,
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अपने ही हाथों से अपना, जिगर जलाए बैठे हैं,
खुशबू की चाहत में गुल से, धोखा खाए बैठे हैं ।
देख रहे हो जिन आँखों में,सपनों की तहरीरों को-
तुम क्या जानो उनमें कितने,अश्क छुपाए बैठे हैं।।
अशोक दीप
जयपुर