अंधेरों में मुझे धकेलकर छीन ली रौशनी मेरी,
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/0fc2fcbe4dda8bf0727e81dc5d963717_2073171e4da43d9d409ba2e291ff9db5_600.jpg)
अंधेरों में मुझे धकेलकर छीन ली रौशनी मेरी,
ग़मो का हमसफर बनाकर हुई खुशी से दुश्मनी मेरी,
कि ऐ किस्मत मेरी इस कश्ती का इक साहिल ठिकाना है,
उसे भी छीनकर ना छीनना तू जिंदगी मेरी।
अंधेरों में मुझे धकेलकर छीन ली रौशनी मेरी,
ग़मो का हमसफर बनाकर हुई खुशी से दुश्मनी मेरी,
कि ऐ किस्मत मेरी इस कश्ती का इक साहिल ठिकाना है,
उसे भी छीनकर ना छीनना तू जिंदगी मेरी।