अंग अंग में मारे रमाय गयो
![](https://cdn.sahityapedia.com/images/post/d08257a3412e1b7d93396bd74feb34fc_70b42a510dc371189161ddfeb09a5595_600.jpg)
अंग अंग में मारे रमाय गयो
मारो श्याम मेरे में समाय गयो
जब से मैं थारे पर वारी होगी
लोभी जग से न्यारी होगी
जपु मैं तो बस नाम थारो
थारे सीवा कोई न मारों
म्हारों जीवन थै ही सवारों
मारा जीवन में जल्दी पधारों
पधारों मारे कण कण में
मन के भीतर हर क्षण में
थारी कृपा ऐसी राखीयों
थारे सीवा कोई न भायों
है म्हारा नंद रा लाल
है गोपीयों रा गोपाल
थारे से हैत ऐसो लाग्यों
मोह माया से मैं तो भाग्यों
कृष्ण कृष्ण में मैं समाय गयो
राधे राधे जग में लुटाय गयों
राधे राधे जग में लुटाय गयों।