Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Sep 2016 · 7 min read

अन्तर आह अनंत अति [ लम्बी तेवरी – तेवर शतक ] +रमेशराज

बोलें-‘वंदे मातरम्’ तस्कर, चोर, डकैत
छद्मवेश को धारे प्यारे खल-गद्दार बहुत से हैं। 1

तुझे पढ़ाने के लिए नारी-तन-भूगोल
मस्तराम के उपन्यास, चैनल-अखबार बहुत से हैं। 2

अन्तर आह अनंत अति, भरे नैन नित नीर
लगता जैसे तेरे ऊपर होते वार बहुत से हैं। 3

कल तक गांधीवाद के बाँट रहे जो फूल
थामे हुए हाथ में अपने वे तलवार बहुत से हैं। 4

राख-राख है जि़न्दगी, चलती केवल साँस
अभी आग के दरिया हमको करने पार बहुत से हैं। 5

बाबा ‘भीमानंद’ का देखा तूने रूप
करे कलंकित देश कथित ऐसे अवतार बहुत से हैं। 6

जाल रोशनी के बिछा तम ने दिये अनेक
मुश्किल है पहचान प्रभासम अब अँधियार बहुत से हैं। 7

कुछ दानव नेता बने, कुछ मुल्ला, कुछ संत
घूम रहे कुछ खुले साँड-से और फरार बहुत से हैं। 8

चाबुक-सी चोटें सहें लिये अधर मुस्कान
इस सिस्टम में मैं ही क्या, मुझसम लाचार बहुत से हैं। 9

तेरे घर तक जायेगा कितना सोच अनाज
घेरे हुए खेत को तेरे साहूकार बहुत से हैं। 11

दुर्योधन के साथ है अब का कान्हा धुत्त
‘द्रौपदि-लाज’ लूटने को बैठे तैयार बहुत से हैं। 12

है वसंत के नाम पर भारी आह-कराह
कोयल जैसे कूक रहे फिर भी फनकार बहुत से हैं। 13

दुश्मन से इस दौर में युद्ध नहीं आसान
पकड़ करे जो तेरी, उस पर वो राडार बहुत से हैं। 14

पल-भर में तुझको करे नेता रीढ़-विहीन
उसके भाषा-जाति-धर्म-सम नव हथियार बहुत से हैं। 15

बन्धु ! उदारीकरण का देख सियासी खेल
नये करों के साथ अभी बाकी अधिभार बहुत से हैं। 16

चलना ही तेरी नियति कठिन दुःखों की राह
समतल के आगे हैं पर्वत और पठार बहुत से हैं। 17

चोरों के सर पर नहीं केवल उसका हाथ
अगर जोड़कर देखोगे तो जुड़ते तार बहुत से हैं। 18

भ्रम के आगे तू खड़ा अब सच के नजदीक
तेरे मन के भीतर प्यारे अब अंगार बहुत से हैं। 19

भाषा की जादूगरी गयी सियासत सीख
तू गदगद हो ताली पीटे ऐसे वार बहुत से हैं। 20

तू धोबी का ज्यों गधा, तू कोल्हू का बैल
तेरे काँधे और पीठ खल लादे भार बहुत से हैं। 21

कहीं मिलेंगे भेडि़ये, कहीं टीसते शूल
अभी जि़न्दगी के ये जंगल करने पार बहुत से हैं। 22

लोग करें अब सत्य का तिरस्कार-अपमान
मंच-मंच छल ने चमकीले पहने हार बहुत से हैं। 23

पाप-पंक इसकी प्रभा, पल-पल धवल प्रकाश
भूल-भुलैया भरे भवन में छल के द्वार बहुत से हैं। 24

जहाँ प्रलोभन खीर-से सत्ता रही परोस
रोज वहाँ टपकाते देखे हमने लार बहुत से हैं। 25

कंटक जैसे भी सुमन जग में मिलें अनेक
फूलों जैसे खूशबू वाले मिलते खार बहुत से हैं। 26

किन गलियारों बीच तू ढूँढे सच्चा प्रेम?
इसको राजनीति कहते हैं, इसके यार बहुत से हैं। 27

ये रावण है आज का, इसका आदि न अंत
इसके सर या हाथ देख ले अब की बार बहुत से हैं। 28

‘नाविक-सागर-नाव’ में बना कुटिल गठजोड़
डूब गये कुछ लोग और आये मँझधार बहुत से हैं। 29

जिसके माथे पर तिलक, पड़ी गले में माल
मान उसी कंठीधारी के कारोबार बहुत से हैं। 30

कहीं चरस में दम लगा, पी ले कहीं शराब
भले नर्क जैसे हों लेकिन सुख-संसार बहुत से हैं। 31

जैसे ‘योगानंद’ ने तारी नारी-देह
ऐसे ही संतों को करने अब उद्धार बहुत-से हैं। 32

हर नेता अब बन गया केवल दौलतराम
अब मत कहना ‘भगतसिंह’,‘अब्दुल गफ्फार’ बहुत से हैं। 33

मंत्री , अफसर, धनिकजन, कथित देश के भक्त
अपने खाते खोल रहे ‘स्विस’ में उस पार बहुत से हैं। 34

भोले जन को लूटना है जिनका है आदर्श
ये सूची लम्बी है इसमें सभ्य शुमार बहुत से हैं। 35

धर्म, जातियों, कौम से अब आगे है खेल
दंगे-हिंसा-आगजनी के नव आधार बहुत से हैं। 36

शंखपुष्पि के नाम पर बाँधे काली दूब
बस्ती-बस्ती जमे हुए ऐसे अत्तार बहुत से हैं। 37

पल-पल पुष्पित-पल्लवित ‘जयचंदों’ का वंश
एक ‘मीरजाफर’ था पहले, अब गद्दार बहुत से हैं। 38

संघर्षों की धूप से क्यों इतना भयभीत
इसी राह पर वृक्ष मिलेंगे छायादार बहुत से हैं। 39

अजब सफाई का हुआ शुरू यहाँ अभियान
महानगर के बीच बढ़े मल के अम्बार बहुत से हैं। 40

कहीं दिखायी दे नहीं शिव जैसा व्यक्तित्व
डाले हुए गले में मिलते बस हरहार बहुत से हैं। 41

अमरबेल-सी बढ़ रही भाटों की फहरिश्त
ये क्या कम है इस दुनिया में पानीदार बहुत से हैं। 42

छिनरे, लुच्चे, सिरफिरे, नंगे, आदमखोर
आज सियासत को ऐसे ही अंगीकार बहुत से हैं। 43

शोषण, हिंसा, शोक, भय, रेप, भोग, व्यभिचार
अब जन-जन की करुण-कथा के उपसंहार बहुत से हैं। 44

आये हैं शैतान कुछ कर में लिये गुलेल
इस जंगल में पेड़ बसें मीठे फलदार बहुत से हैं। 45

जिसने कल लूटा हमें जता-जता अपनत्व
उसको लेकर अपने मन में आज गुबार बहुत से हैं। 46

रोजी हिन्दी से मगर, हिन्दी से ही बैर
बोल रहे इंग्लिश वे ही फर्राटेदार बहुत से हैं। 47

ये है पूँजीवाद का बन्धु असल विद्रूप
कुछ खायें तर माल मगर भूखे परिवार बहुत से हैं। 48

किसी साँप के डंक-सी जिनकी है तासीर
ऐसी संज्ञाओं से होने अब अभिसार बहुत से हैं। 49

लोकतंत्र में लोक की खिंची, खिंचेगी खाल
अपराधी के हर सत्ता से आज करार बहुत से हैं। 50

जमाखोर खुश देख ये, नंदित साहूकार
पकी हुई फसलों पर ओले और तुषार बहुत से हैं। 51

असंतोष भारी मगर कौन करे विद्रोह?
इस सिस्टम के छले हुए घायल-बेज़ार बहुत से हैं। 52

कौन तोड़ता अब यहाँ दुर्योधन की जाँघ
रहे दूर से भीम सरीखे बस हुंकार बहुत से हैं। 53

जो नारी-सम्मान की दिन में करते बात
तम में नारी-तन से कपड़े रहे उतार बहुत से हैं। 54

सिर्फ फाइलों में हुआ रोगी का उपचार
बँटे नहीं जनता में, केवल सड़े अनार बहुत से हैं। 55

पत्रकार अखबार को ऐसे रहा निकाल
कुछ चोरी के लेख छपें बाकी साभार बहुत से हैं। 56

उजला-उजला दीखता जो मंत्री इस दौर
उसके अनाचार के किस्से अपरम्पार बहुत से हैं। 57

तूने ही खल देखकर कहे नहीं अपशब्द
मेरे भी अनुभाव क्रोध में बने कटार बहुत से हैं। 58

फिर भी कड़वाहट रही, गुड़-सी नहीं मिठास
हमने जग के कटुभावों को दिये निथार बहुत से हैं। 59

मसलन-‘रहना चाहिए आज पाप पर मौन’
तूने तथ्य रखे जितने उनमें निस्सार बहुत से हैं। 60

बिना बागवाँ के कहीं उजड़े होंगे बाग !
खुद जो माली ने रोंदे ऐसे गुलजार बहुत से हैं। 61

कौन देखता आजकल अपने मन के ऐब
औरों को पथभ्रष्ट बताने हेतु उदार बहुत से हैं। 62

भूल निवेदन को कई बस देते आदेश
जीवन को जीते अब जैसे ‘लोट-लकार’ बहुत से हैं। 63

खायें चारा, यूरिया, कफन, तोप, सीमेंट
नेताजी के अब ऐसे ही नित आहार बहुत से हैं। 64

माना जंगल ये नहीं, नगर पुकारा जाय
किन्तु यहाँ पर लोग तेंदुए और सियार बहुत से हैं। 65

सहज, सरल या सौम्य तू बन्धु उसे मत बोल
अहंकार, मद, लोभ, मोह के उसे बुखार बहुत से हैं। 66

पैदा करने हैं इसे काम-कला से दाम
निर्लज्जा के ऊपर आने अभी निखार बहुत से हैं। 67

खरबूजे को देखकर खरबूजे पर रंग
एक नहीं अब झूठी शेखी रहे बघार बहुत से हैं। 68

बस अरि ही निर्मूल हो और न हो जन-हानि
दुश्मन से लड़ने को यारो अभी प्रकार बहुत से हैं। 69

जिसमें सघन विरोध है जो लायेगा क्रान्ति
उस विचार के जगह-जगह होने सत्कार बहुत से हैं। 70

रति स्थायी भाव से बने न बस शृंगार
पुत्री , पुत्र, पिता, माता-सम जग में प्यार बहुत से हैं। 71

स्तन-नैन-नितम्ब में करे इजाफा रोज़
कामातुर के पास नारि के अब उपचार बहुत से हैं। 72

जान कबीरा साधु को ये है नटवरलाल
इसकी काली करतूतों के बने शिकार बहुत से हैं। 73

कोयल को कागा कहें और वका को मोर
रहे ‘अश्रु-बारहमासी’ को बोल मल्हार बहुत से हैं। 74

इसका बँटवारा करो अब सबकी है माँग
घर है बीस वर्ग गज का पर हिस्सेदार बहुत से हैं। 75

जो उपजाऊ भूमि थी, जिस पर सबको नाज
उसी भूमि पर पक्की सड़कें, अब बाजार बहुत से हैं। 76

आया तेरी आँख में क्यों सूअर का बाल
तेरे ऊपर भइया मेरे भी उपकार बहुत से हैं। 77

धीरे-धीरे भा रहा तुझे सियासी खेल
जिसमें वेश बदलने वाले सुन अय्यार बहुत से हैं। 78

हँसने पर आँसू दिखें, रोने पर मुस्कान
सब के मन के भाव आजकल चक्करदार बहुत से हैं। 79

कहाँ रही वो सादगी, कहाँ रहे वे लोग
पारदर्शिता के सँग मिलते अब दीवार बहुत से हैं। 80

बाबू खिड़की बंद कर अफसर से बतियाय
यद्यपि बूढ़े लोग लगाये खड़े कतार बहुत से हैं। 81

दुखिया थाने में गयी क्यों कर आधी रात
जिस थाने में करने वाले पापाचार बहुत से हैं। 82

ये बापू का देश है, सब बापू के भक्त
बात करेंगे तुझसे लेकिन थप्पड़-मार बहुत से हैं। 83

थाने में खल देखकर सबके बल हों पस्त
पर निर्बल को बारी-बारी दें फटकार बहुत से हैं। 84

जहाँ न्याय की आस ले आया ‘होरीराम’
कोई गेंडे जैसा लगता, दिखें बिजार बहुत से हैं। 85

बन्धु खीज कर दे रहा क्यों भाषा को दोष
माना शब्द रहे अनफिट तेरे अनुसार बहुत से हैं। 86

बार-बार जिनके रही छल-चंगुल से मुक्त
आज उसी औरत को कहते लोग छिनार बहुत से हैं। 87

यदि चाहे सरकार तो मिटे गरीबी-भूख
गेंहू-चावल जिनमें सड़ते वो भंडार बहुत से हैं। 88

क्या कहने इस देश के? क्या ऊँचे आदर्श?
भारत बीच निठारी जैसे नर-संहार बहुत से हैं। 89

फूल गिरे नहिं पत्तियाँ और न सूखे पेड़
ऐसे भी जीवन में आये नित पतझार बहुत से हैं। 90

नगरवधू बीबी बना जिनने चीरा माल
बने अनैतिकता के बूते अब स्टार बहुत से हैं। 91

जो लें रुचिका-जैसिका-सम की इज्जत लूट
उनको मिले पदोन्नति भारी औ’ स्टार बहुत से हैं। 92

सीढ़ी ने लम्बे किये बौने जिनके पाँव
दिल्ली की महरौली जैसे अब मीनार बहुत से हैं। 93

तू प्यारे यदि अम्ल है, मत घमंड कर और
ऐसे मेरे मंत्र पास हैं जिनमें क्षार बहुत से हैं। 94

करतब दाने-जाल का तेरा असफल आज
गयीं बुलबुलें अब बचने के सीख प्रकार बहुत से हैं। 95

ज्यादा दिन टिकना नहीं ये सत्ता का खेल
तेवरियों के बागी तेवर सुन ले यार बहुत से हैं। 96

मैं ‘स्थायी भाव’ हूँ, मुझसे कर परहेज?
तूने कूड़ा कह ‘संचारी’ दिये बुहार बहुत से हैं। 97

कोई मिलता अब नहीं पावन मन के साथ
नागिन जैसी संज्ञाओं से नित अभिसार बहुत से हैं। 98

कविता है उसके लिए, ईंगुर, बिन्दी, माल
उसके गर्म कथाओं जैसे भी व्यापार बहुत से हैं। 99

अधरों पर मुस्कान वह रखता सबके साथ
लेकिन उसके पीड़ादायक भी व्यवहार बहुत से हैं। 100

नैतिकता की पालकी और न पाओ लूट
इसकी रक्षा करने वाले आज कहार बहुत से हैं। 101

अब तू मंदिर नमन कर औ’ गुरुद्वारे-चर्च
हम आये सँग तेरे मस्जिद पूज मजार बहुत से हैं। 102

स्वार्थ-सिद्धि के हेतु ये बड़ी मुखौटेबाज
राजनीति के तेरी खातिर लाड़-दुलार बहुत से हैं। 103

मन में पल-पल भ्रम भरे, बातें लच्छेदार
तेरे यार व्यंजना में संवाद-विचार बहुत से हैं। 104

सौ तेवर की तेवरी, बनी आग का राग
करने हमें क्रान्ति के सपने अब साकार बहुत से हैं। 105
————————————————————-
+ रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ़-202001 Mo.-9634551630

Language: Hindi
268 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
रामलला ! अभिनंदन है
रामलला ! अभिनंदन है
Ghanshyam Poddar
असफलता का जश्न
असफलता का जश्न
Dr. Kishan tandon kranti
You relax on a plane, even though you don't know the pilot.
You relax on a plane, even though you don't know the pilot.
पूर्वार्थ
धूमिल होती पत्रकारिता
धूमिल होती पत्रकारिता
अरशद रसूल बदायूंनी
ਹਕੀਕਤ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ
ਹਕੀਕਤ ਜਾਣਦੇ ਹਾਂ
Surinder blackpen
ये दुनिया घूम कर देखी
ये दुनिया घूम कर देखी
Phool gufran
इन टिमटिमाते तारों का भी अपना एक वजूद होता है
इन टिमटिमाते तारों का भी अपना एक वजूद होता है
ruby kumari
हे!जगजीवन,हे जगनायक,
हे!जगजीवन,हे जगनायक,
Neelam Sharma
फालतू की शान औ'र रुतबे में तू पागल न हो।
फालतू की शान औ'र रुतबे में तू पागल न हो।
सत्य कुमार प्रेमी
कविता -नैराश्य और मैं
कविता -नैराश्य और मैं
Dr Tabassum Jahan
विद्यापति धाम
विद्यापति धाम
डॉ. श्री रमण 'श्रीपद्'
मुक्तक
मुक्तक
प्रीतम श्रावस्तवी
ये मेरे घर की चारदीवारी भी अब मुझसे पूछती है
ये मेरे घर की चारदीवारी भी अब मुझसे पूछती है
श्याम सिंह बिष्ट
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
गुरु महाराज के श्री चरणों में, कोटि कोटि प्रणाम है
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
*पिता*...
*पिता*...
Harminder Kaur
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती। आज मैं CA बन गया। CA Amit
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती। आज मैं CA बन गया। CA Amit
CA Amit Kumar
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ग़र वो जानना चाहतें तो बताते हम भी,
ओसमणी साहू 'ओश'
युग बीत गया
युग बीत गया
Dr.Pratibha Prakash
आपका आकाश ही आपका हौसला है
आपका आकाश ही आपका हौसला है
Neeraj Agarwal
पिता बनाम बाप
पिता बनाम बाप
Sandeep Pande
ये रंगो सा घुल मिल जाना,वो खुशियों भरा इजहार कर जाना ,फिजाओं
ये रंगो सा घुल मिल जाना,वो खुशियों भरा इजहार कर जाना ,फिजाओं
Shashi kala vyas
हर एक ईट से उम्मीद लगाई जाती है
हर एक ईट से उम्मीद लगाई जाती है
कवि दीपक बवेजा
*डायरी के कुछ प्रष्ठ (कहानी)*
*डायरी के कुछ प्रष्ठ (कहानी)*
Ravi Prakash
श्री राम अमृतधुन भजन
श्री राम अमृतधुन भजन
Khaimsingh Saini
हाथी के दांत
हाथी के दांत
Dr. Pradeep Kumar Sharma
■  आज का लॉजिक
■ आज का लॉजिक
*Author प्रणय प्रभात*
बिल्ली
बिल्ली
Manu Vashistha
बेवफाई की फितरत..
बेवफाई की फितरत..
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
पूरी निष्ठा से सदा,
पूरी निष्ठा से सदा,
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
क्या रावण अभी भी जिन्दा है
क्या रावण अभी भी जिन्दा है
Paras Nath Jha
Loading...