Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Jan 2017 · 2 min read

शोर क्यों ?

शोर क्यों है ?
बेटी बचाओ, बेटी बचाओ |
क्या बीमार हैं हम ?
या लाचार हैं हम ?
जब लाचार हम नहीं, बीमार हम नहीं !
तो बचाओ-बचाओ का विवाद कैसा ?
पहले खुद पराधीन बनाते,
फिर कहते बेटी बचाते !

हमने ही रची सृष्टि,
फिजाओं में खुशबू भरी,
रंगों की पहचान की,
जग का श्रृंगार की,
फिर भी हम कहलाते निराधार,
ऐसे जीवन को धिक्कार !

है, बस ख्वाइश इतनी,
सबलता की पहचान करो,
महता को स्वीकार करो,
हमारे अस्तित्व को अंगीकार करो |
बदलो मत प्रकृति हमारी,
स्वरुप को दो स्वीकृति तुम्हारी |
स्वछन्द विकास की परंपरा गढ़ो,
झूठे आवरण, हम पर न मढ़ो |

हमसे हुई रचना तुम्हारी,
वंश का किया हमने विस्तार,
सिखाया देवतुल्य संस्कार भी,
मानवता का संचार किया,
भूमिकाओं का सम्मान किया,
हमारी पुनरुत्पादकता का मान धरो,
अब,
ईश्वरीय निर्णय का सम्मान करो |

साहस देकर, संबल देकर,
और देकर सम्मान भी,
हमने दी योग्यता तुम्हें,
और बनाया महान भी,
किया हमने तुम्हें,
निरन्तर सशक्त,और,
विडंबना ऐसी कि तुमने ही,
हमें किया विरक्त,
फिर भी, न शिकायत,
न कभी तुम्हारा अपमान की |

हमारे ही उत्थान के नाम पर,
होता है प्रतिदिन व्यापार,
हमें नहीं आती राजनीति,
हमने गढ़ा परिपक्व संसार,
दिखाई थी हमने तुम्हें,
ऊँचाई चोटी की,
और तुमने तब सेंकी,
नाम पर मेरे, रोटी सत्ता की |
धन्य है यह भाग्य हमारा,
जो तुमने हमें,
उपेक्षाओं से इतना भरा !

समाज के मजबूत पहिये को,
कह-कह कर बेबस-लाचार,
मानवता को न करो शर्मसार,
गुजारिश है बस इतनी आज,
नए गढ़ो कुछ मानक खास,
आजादी की पहल करो,
रूप को मेरे पुनः पढ़ो,
नयी रचो परिभाषा मेरी |

देवी रूप की पूजा की है,
अब हमारे जरिए लिए,
फैसलों का गुणगान करो,
नारा रचो अब कुछ नया,
जिसमें हो प्रदर्शित सिर्फ,
ऊर्जा, ताकत और
संघर्षशीलता हमारी,
न कहना अब कभी बेचारी |

जीवन था दुरूह जब,
हमने सिखाई उत्तरजीविता,
जीवन में जब आई स्थिरता,
तब सिखाई रचनात्मकता,
अब चारो ओर है भागम-भाग,
तब हमने ही थामी,
सांस्कृतिक वरीयता का हाथ |

अतः नाट्य न रचो,
सुरक्षा की हमारी,
सम्मान दो, पहचान दो,
स्वीकृति दो,
अस्तित्व को हमारी,
अस्मिता का भान करो,
स्वाभिमान को स्थान दो,
इसीलिए नारा नहीं,
किनारा दो,
जिसका निर्माण,
न किसी और के द्वारा हो |

तो फिर अब,
नारा क्यों है ?
बेटी बचाओ, बेटी बचाओ,
कहना ही है तो यह कहो,
गुण बेटी का सिखाओ,
गुण बेटी का ही सिखाओ,
तो अब सिर्फ अनुरोध है,
सभी से यह,
हौसला बढ़ाओ, हौसला बढ़ाओ |

कवियित्री
रीना भारती

2 Likes · 1 Comment · 992 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sundeep Thakur
मंजिल तक पहुंचने
मंजिल तक पहुंचने
Dr.Rashmi Mishra
संस्कार संयुक्त परिवार के
संस्कार संयुक्त परिवार के
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
कविता
कविता
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
बरखा रानी तू कयामत है ...
बरखा रानी तू कयामत है ...
ओनिका सेतिया 'अनु '
उसने
उसने
Ranjana Verma
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ( पूर्व निदेशक – आयुष ) दिल्ली
डॉ अरुण कुमार शास्त्री ( पूर्व निदेशक – आयुष ) दिल्ली
DR ARUN KUMAR SHASTRI
मुक्तक... हंसगति छन्द
मुक्तक... हंसगति छन्द
डॉ.सीमा अग्रवाल
*रंगीला रे रंगीला (Song)*
*रंगीला रे रंगीला (Song)*
Dushyant Kumar
रंजीत कुमार शुक्ल
रंजीत कुमार शुक्ल
Ranjeet kumar Shukla
दोहा
दोहा
दुष्यन्त 'बाबा'
कुछ बात करो, कुछ बात करो
कुछ बात करो, कुछ बात करो
Shyam Sundar Subramanian
*कांच से अल्फाज़* पर समीक्षा *श्रीधर* जी द्वारा समीक्षा
*कांच से अल्फाज़* पर समीक्षा *श्रीधर* जी द्वारा समीक्षा
Surinder blackpen
चल अंदर
चल अंदर
Satish Srijan
जाती नहीं है क्यों, तेरी याद दिल से
जाती नहीं है क्यों, तेरी याद दिल से
gurudeenverma198
#विषय --रक्षा बंधन
#विषय --रक्षा बंधन
rekha mohan
बाँकी अछि हमर दूधक कर्ज / मातृभाषा दिवश पर हमर एक गाेट कविता
बाँकी अछि हमर दूधक कर्ज / मातृभाषा दिवश पर हमर एक गाेट कविता
Binit Thakur (विनीत ठाकुर)
"कोरोना बम से ज़्यादा दोषी हैं दस्ता,
*Author प्रणय प्रभात*
भूल गयी वह चिट्ठी
भूल गयी वह चिट्ठी
Buddha Prakash
गुरु से बडा न कोय🌿🙏🙏
गुरु से बडा न कोय🌿🙏🙏
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
व्यंग्य एक अनुभाव है +रमेशराज
कवि रमेशराज
Ghughat maryada hai, majburi nahi.
Ghughat maryada hai, majburi nahi.
Sakshi Tripathi
पंथ (कुंडलिया)
पंथ (कुंडलिया)
Ravi Prakash
हिदायत
हिदायत
Bodhisatva kastooriya
3113.*पूर्णिका*
3113.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
रास्ता गलत था फिर भी मिलो तब चले आए
रास्ता गलत था फिर भी मिलो तब चले आए
कवि दीपक बवेजा
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
मरने से पहले / मुसाफ़िर बैठा
Dr MusafiR BaithA
मोह मोह के चाव में
मोह मोह के चाव में
Harminder Kaur
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
जन जन फिर से तैयार खड़ा कर रहा राम की पहुनाई।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
. खुशी
. खुशी
Vandana Namdev
Loading...