Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
22 Mar 2017 · 5 min read

वो एक रात 8

नीलिमा की हालत बहुत ही खराब थी। वह हाँफती सी छत की सीढ़ियों को चढ़ती चली गई। छत पर पहुँचते ही नीलिमा को रवि दिखाई नहीं दिया। “चीख तो यहीं से आई थी।फिर रवि कहाँ है?”
“र…. वि…. ” नीलिमा ने घबराते हुए आवाज लगाई। इस समय आकाश बिलकुल साफ था। और थाली में भरे सफेद चमेली के फूल की तरह तारों से भरा था। अचानक नीलिमा को छत को घेरती हुई मुंडेर पर कुछ परछाइयाँ दिखाई दीं। और फिर…….
खुरचने की और बड़बड़ाने की आवाजें।….. इन आवाजों को सुनकर नीलिमा उछल पडी़। ये आवाजें तो वो पहले भी सुन चुकी है। इस समय नीलिमा दहशत से दोहरी हो चुकी थी। परंतु उसे रवि की फिक्र थी। और इस फिक्र ने ही उसे ये सब सहन करने की शक्ति दे रखी थी। वह दीवार की ओर चली। तभी उसे पानी के टैंक के पीछे से रवि के कराहने की आवाजें आई।
“र… वि… ” इतना कहकर वह मुंडेर की दिशा से पीछे पलटी और टैंक के पीछे चल दी। वहाँ का मंजर देखकर नीलिमा की आँखें फटी रह गई।
रवि बेसुध पड़ा था और उसके कपड़े खून से सने थे। उसके मुँह से सफेद सफेद झाग निकल रहे थे। रवि को ऐसी हालत में देखकर नीलिमा के पैरों तले जमीन खिसक गई। रवि के कपड़ों पर खून देखकर नीलिमा ने सोचा कहीं रवि…… नहीं… नहीं.. ऐसा नहीं हो सकता…. । वह भागकर रवि के पास गई। उसने रवि को झिंझोड़ना शुरू कर दिया।
“रवि…. रवि.. तुम ठीक तो हो न। र… वि।”
रवि ने एक कराह के साथ आँखें खोल दी। नीलिमा ने चैन की साँस ली। उसने उससे कुछ पूछने की कोशिश की परंतु रवि की हालत को देखकर उसने उसे बहुत मुश्किल से सहारा देकर उठाया और नीचे की ओर चल दी…..
और उनके पीछे वही साया अपने खतरनाक दाँतों को बाहर निकालकर अजीब सी हँसी हँस रहा था। अचानक उसने पीछे को छलांग लगाई और गायब हो गया।
नीलिमा बहुत मुश्किल से रवि को सँभाल रही थी क्योंकि रवि के सारे शरीर का भार नीलिमा पर पडा़ था। सीढ़ियाँ उतरते हुए डर था कि कहीं रवि गिर न जाए। उसकी हालत पहले से खराब है। नीलिमा बार-बार रवि के कपड़ों पर लगे खून को देखकर भय से सिहर रही थी। वह रवि के शरीर को चैक कर चुकी थी वह घायल नहीं था तो फिर उसके कपड़ों पर खून कहाँ से आया… और…., और… हे भगवान्.. अचानक नीलिमा को कुछ ध्यान आया… रवि ने आज ये कपड़े कब पहने…. ये कपड़े तो उसने कल रात पहने थे। अब नीलिमा के मस्तिष्क में सवालों का ढेर लग चुका था। और रवि ऊपर… ऐसी हालत में…. कैसे… । सवालों के तूफानों में घिरी नीलिमा जैसे ही नीचे सीढ़ी के आखिरी पायदान पर पहुँची…. उसने अपने सामने उस भयंकर बिल्ली को… मियाऊँ…. मियाऊँ…. करते हुए पाया…. बिल्ली को देखकर नीलिमा सिहर गई। वाकई वह बिल्ली अपने सामान्य कद से काफी बडी़ थी। नीलिमा डरी हुई थी क्योंकि वह बिल्ली नीलिमा को घूरे जा रही थी… ऊपर से रवि के शरीर का बोझ…. हे भगवान् कैसी मुसीबतें आन पड़ीं हैं ये…. ।
******************************
जंगल में रात के सन्नाटे की आवाज ऐसी लग रही थी मानों कोई अजीब सी आवाजों में गा रहा हो। वे चारों अभी तक कार में चुपचाप बैठे थे। अँधेरा बढ़ता जा रहा था।
“दिनेश, क्या सोचा है अब? आगे तो कोई रास्ता नहीं है।” मनु ने ड्राइविंग सीट पर बैठे बैठे पूछा।
इशी और सुसी भी दिनेश की तरफ ही देख रहे थे।
“क्यों न आज रात हम गाड़ी में ही सो जाएँ, जब दिन निकल जाएगा तब कैंपिंग की जगह देख लेंगे।” सुसी ने कहा।
“सुसी! व्हाट नोनसेंस! क्या यहाँ हम इतनी दूर जंगल में बंद गाड़ी के अंदर सोने ही आएँ हैं! इसमें क्या रोमांच रह जाएगा फिर!” दिनेश ने सुसी को मानो डपटते हुए कहा।
“हम बाहर निकलकर गाड़ी से ज्यादा दूर भी नहीं, पर अभी कैंपिंग के लिए जगह ढूँढे़ंगे। और फिर इशी ने जल्दी जल्दी की भी तो रट लगा रखी है।”
“हाँ, वो तो है, कुछ भी हो परसो शाम तक हम यहाँ से निकल लेंगे। पापा आ चुके होंगे तो! क्या जवाब दूँगी! और वैसे भी झूठ बोलकर आए हैं, ज्यादा दिन यहीं गुजारे तो घरवालों को पता भी चल सकता है।” इशी ने दिनेश की बात का समर्थन करते हुए कहा।
अब चारों की सहमति बन चुकी थी। सुसी ने भी डरते-डरते हामी भर ही दी थी।
तभी सामने वाले पेड़ के पत्तों की खड़कने की आवाजें आईं और हूअअअअअअअअअहूअअअ….. करता हुआ एक बहुत बड़ा उल्लू अपने विशाल पंखों को फड़फड़ाता हुआ गाड़ी की विंडस्क्रीन के सामने बैठ गया। उसके इस तरह से अचानक सामने आकर बैठने से चारों हड़बड़ाकर उछले। सुसी की तो मानों चीख ही निकल गई थी। उसकी चमकती आँखों को देखना कोई आसान काम नहीं था। ऐसा लगता था जैसे उसकी आँखें हजार वाट का बल्ब हो।
“उल्लू ही तो है यार,इतना क्यूँ डर रहे हो?”
इशी ने कहा।
“इसकी आँखें कितनी खतरनाक हैं….. शरीर में सिहरन सी पैदा कर रही हैं।” मनु ने ड्राइविंग सीट पर पीछे की ओर चिपकते हुए कहा।
“काफी बड़ा उल्लू है…. ।” दिनेश उल्लू को घूरते हुए बोला। इतने में उल्लू ने फिर हूहूहूअअअअ की आवाजें निकाली और फिर उड़ गया। चारों बहुत देर तक बँधे से बैठे रहे। फिर थोड़ी देर में संयत हो गए।
“चलें फिर।” दिनेश ने कहा।
“एक मिनट, और सब बातें छोडो़, जंगली जानवर तो सामने आ ही सकते हैं….. उनका सामना कैसे करोगे?” अबकी बार सुसी की बात से सब सहमत हो गए।
इतने में दिनेश ने मुस्कुराते हुए एक मशाल नुमा चीज निकाली और गाड़ी से बाहर निकलकर उसमें लाइटर से आग जला ली। सुसी, इशी और मनु भी बाहर आ गए। मनु ने गाड़ी को लाॅक कर दिया। और अब चारों जंगल में अनजान दिशा की ओर बढ़ गए।
जंगल में वातावरण शांत था। पेड़ एक दूसरेसे सटे हुए से खडे़ थे। उनकी शाखाएँ आपस में इतनी मिली हुई थी कि एकबारगी में शाखाओं को पहचानना नामुमकिन था कि वे किस पेड़ की हैं। छोटी छोटी झाडि़याँ भी उगी हुई थी। पेड़ों के सूखे निर्जीव पत्तों में उनके चलने से मानों जान आ गई थी। चड़ चड़ की आवाज रात की नीरवता के कारण जंगल में बहुत दूर तक सुनाई देती थी। दिनेश के हाथ में कृत्रिम मशाल थी। वह आगे-आगे चल रहा था। सुसी,इशी और मनु क्रमशः उसके पीछे थे। वे चलते ही जा रहे थे परंतु उन्हें कहीं भी कैंपिंग के लिए थोड़ा सा भी खुला स्थान नहीं मिला।
अभी तक कोई जंगली जानवर शायद मशाल के कारण उनके सामने नहीं आया था।
इशी और सुसी चलते चलते थक चुकी थी।
“मुझसे तो नहीं चला जा रहा और मनु।” सुसी ने कहा। “दिनेश कोई जगह तो मिल ही नहीं रही, अब क्या करें?”
“और ये सामान मुझे तो बहुत भारी लग रहा है अब।”इशी ने थके से अंदाज में कहा।
“अच्छा सुनो एक काम करते हैं थोड़ी दूर और चलते हैं अगर कोई जगह नहीं मिलती है तो फिर आगे के बारे में सोचेंगे।” दिनेश की बात से सहमत होकर तीनों उसके पीछे चल पडे़।
हालांकि चारों जंगल में फूँक फूँककर आगे बढे़ जा रहे थे लेकिन वे इस बात से बेफिक्र थे कि एक लहराता साया अपनी चमकती आँखों के साथ बराबर उनके पीछे लगा हुआ था।
सोनू हंस

Language: Hindi
425 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
शासन अपनी दुर्बलताएँ सदा छिपाता।
शासन अपनी दुर्बलताएँ सदा छिपाता।
महेश चन्द्र त्रिपाठी
आप इसे पढ़ें या न पढ़ें हम तो बस लिखते रहेंगे ! आप सुने ना सुन
आप इसे पढ़ें या न पढ़ें हम तो बस लिखते रहेंगे ! आप सुने ना सुन
DrLakshman Jha Parimal
रमेशराज की तेवरी
रमेशराज की तेवरी
कवि रमेशराज
विचार
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
आईना प्यार का क्यों देखते हो
आईना प्यार का क्यों देखते हो
Vivek Pandey
#दोहा-
#दोहा-
*Author प्रणय प्रभात*
देवा श्री गणेशा
देवा श्री गणेशा
Mukesh Kumar Sonkar
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
मैं भी तुम्हारी परवाह, अब क्यों करुँ
gurudeenverma198
आँखों में अब बस तस्वीरें मुस्कुराये।
आँखों में अब बस तस्वीरें मुस्कुराये।
Manisha Manjari
हूं तो इंसान लेकिन बड़ा वे हया
हूं तो इंसान लेकिन बड़ा वे हया
सुरेश कुमार चतुर्वेदी
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
डॉ अरुण कुमार शास्त्री - एक अबोध बालक
DR ARUN KUMAR SHASTRI
गीत..
गीत..
Dr. Rajendra Singh 'Rahi'
हर तरफ़ तन्हाइयों से लड़ रहे हैं लोग
हर तरफ़ तन्हाइयों से लड़ रहे हैं लोग
Shivkumar Bilagrami
विनम्रता
विनम्रता
Bodhisatva kastooriya
हिंदी दिवस पर विशेष
हिंदी दिवस पर विशेष
Akash Yadav
** वर्षा ऋतु **
** वर्षा ऋतु **
surenderpal vaidya
प्रेम एक निर्मल,
प्रेम एक निर्मल,
हिमांशु Kulshrestha
💐प्रेम कौतुक-433💐
💐प्रेम कौतुक-433💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
कुण्डलिया
कुण्डलिया
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
कचनार
कचनार
Mohan Pandey
इश्क
इश्क
SUNIL kumar
कभी कभी ज़िंदगी में जैसे आप देखना चाहते आप इंसान को वैसे हीं
कभी कभी ज़िंदगी में जैसे आप देखना चाहते आप इंसान को वैसे हीं
पूर्वार्थ
🌷🌷  *
🌷🌷 *"स्कंदमाता"*🌷🌷
Shashi kala vyas
दीदी
दीदी
Madhavi Srivastava
वक़्त के वो निशाँ है
वक़्त के वो निशाँ है
Atul "Krishn"
संसद के नए भवन से
संसद के नए भवन से
Umesh उमेश शुक्ल Shukla
चल‌ मनवा चलें....!!!
चल‌ मनवा चलें....!!!
Kanchan Khanna
कैसे कहूँ ‘आनन्द‘ बनने में ज़माने लगते हैं
कैसे कहूँ ‘आनन्द‘ बनने में ज़माने लगते हैं
Anand Kumar
मेरी कविताएं
मेरी कविताएं
Satish Srijan
*नज़्म*
*नज़्म*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
Loading...