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25 Jan 2017 · 1 min read

लाश आशिक़ की उठाई जा रही हैं

पालकी दुल्हन कि लाई जा रही हैं
लाश आशिक़ की उठाई जा रही हैं

हुस्न की महफ़िल सजाई जा रही हैं
आज फिर क़ीमत लगाई जा रही हैं

फेंक पांसा क्या तमाशा कर रहे वो
वोट की क़ीमत लगाई जा रही हैं

सत्य को दुनिया की नजरों से छुपाकर
बात झूठी क्यो बताई जा रही हैं

भूख से बेहाल है जो लोग उनको
दूर से रोटी दिखाई जा रही हैं

आशिकी का दंभ भरते तो सभी है
पर किसी से क्या निभाई जा रही हैं

याद उनकी ही सताती है कँवल क्यों
जिसके दिल से तू भुलाई जा रही हैं

1 Like · 317 Views
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