मुझे जीना सीखा दो ज़रा ( ग़ज़ल)
मुझे जीना सीखा दो ज़रा ( ग़ज़ल)
मैने कभी नहीं देखा ख़ुशी का चेहरा ,
कैसा होता है मुझे दिखा तो दो ज़रा।
तेरी महफ़िल में सुनो ऐ मेरे साकी!
है गर मसर्रत-ऐ-जाम तो पिला दो ज़रा।
जिंदगी क्या होती है? मुझे नहीं पता,
मायने इसके मुझे भी समझा दो ज़रा।
उम्र तो ख़त्म हुई ,ना ख़त्म हुए इम्तिहान,
कहाँ तक जायेगा यह कारवां ? बता दो ज़रा।
यह तमन्ना-ऐ-दिल औ बेशुमार गम ,हाय!,
पूछना चाहती हूँ खुदा से,आकर मिल जाओ ज़राा।