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23 Mar 2017 · 1 min read

माँ और पत्थर

आज मिली थी मुझे
निराला की वही पवित्रा
हां वही जो अभी भी
तोड़ती है पत्थर
इलाहाबाद के पथ पर
उसे देख मैं ठिठका
और फिर ठहर गया
मेंने देखा उसे फिर
महाप्राण की नजर से
मैंने देखी पसीने की बूंद
ढुलकती उसके माथे से
जिसमें प्रतिबिंबित थे
दर्द, कराह, भूख और चिंता
पर फिर मैनें देखा
उस पत्थर को जिसमें
अनजाने में ही तराश दी थी उसने
उसके बच्चे की सलोनी मूरत
और साथ में सपने उजालों के
शायद इसीलिये वह अनवरत
इलाहाबाद के पथ पर
तोड़ती है पत्थर

Language: Hindi
399 Views
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