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21 Jan 2017 · 1 min read

बेटियां

बेटीयां है अनमोल,
इनको तु ना तोल।
बेटे से बढकर ही,
ये करती रखवाली है।।
माँ की सहेली है ये,
पिता की चिड़कोलि है।
भाई के लिए तो जैसे,
दुआओं की थाली है।।
क्यों है कुलदीपक की चाह,
भूली क्यों है ये गृह मां।
बेटी भर देती है भंडार,
जैसे लक्ष्मी संग दिवाली है।।
क्यों है फिर भी संशय,
पुरुषप्रधान ही क्यों है मतव्य।
क्या युद्ध के हालत में भी,
सुनी नहीं रानी लक्ष्मी की थाति है।।
बेटी से चलता है कुल,
भ्रम में जाते हो भूल।
क्या बेटियों के बिना ही,
बहुओं की कल्पना की जाती है।।
बेटियों को तू इतना समझ,
संसार की दिव्य सत्ता समझ।
चाँद नहीं ये सूरज है,
दुर्गा सी बेटियों से ये धरा थर्राई है।।
बेटियां है अनमोल,
इनको तू ना तोल।
बेटे से बढकर ये,
करती रखवाली है।।
बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ ।।
समाज को, सुसभ्य बनाओ।।
(रचनाकार- डॉ शिव लहरी)

Language: Hindi
3 Likes · 1 Comment · 1085 Views
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