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20 Apr 2017 · 1 min read

फूल खारों में मुस्कुराते हैं

आप ख़ाबों में जब भी आते हैं ।
सोनेे देते नही सताते हैं ।।

दिल मिरा बस तड़प के रह जाता ।
दूर हमसे जो आप जाते हैं ।।

प्यार मेरा उन्हें रुलाएगा ।
आज़ जैसे हमें रुलाते हैं ।।

जो दिवाने असल में होते हैं ।
जख़्म खाते हैं मुस्कुराते हैं।।

हम निभाते वफ़ा को मर के भी ।
दिल किसी से अगर लगाते हैं ।।

तोड़ कर दिल गया है वो जब से।
बोझ जख़्मों का हम उठाते हैं ।।

दिल जला कर सुकूँ न पाते वो।
जब्त को मेरे आज़माते हैं ।।

दफ़्न सीने में हसरतें मेरी ।
अश्क़ फिर भी नहीं बहाते हैं ।।

राह में जो मिला मुझे हँस कर।
साथ सबका ही हम निभाते हैं ।।

जख़्म खाकर भी हँस रहा हूँ मैं ।
देख वो खूब तिलमिलाते हैं ।।

जो भटकने लगे हैं राहों से।
राह उनको सही दिखाते हैं ।।

मैं भला खुश न क्यूँ रहूँ “प्रीतम”।
फूल खारों में मुस्कुराते हैं ।।

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