Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
21 Feb 2017 · 6 min read

(साक्षात्कार) प्रमुख तेवरीकार रमेशराज से प्रसिद्ध ग़ज़लकार मधुर नज़्मी की अनौपचारिक बातचीत

तेवरी जन-जन की उस भाषा की अभिव्यक्ति है, जो सारे भारतीयों की ज़ुबान है
———————————————————-
[ प्रमुख तेवरीकार रमेशराज से प्रसिद्ध ग़ज़लकार मधुर नज़्मी की अनौपचारिक बातचीत ]
———————————————————
रमेशराज, वैचारिक जमीन पर पोख्ता, ‘तेवरीपक्ष’ के तेजस्वी संपादक, लघुकथाकार, कथाकार, गीतकार, प्रमुख तेवरीकार, बेवाक वाग्मिता, स्पष्टवादिता, पत्र-पत्रिकाओं के साहित्यिक केनवस पर छाया हुआ एक सारस्वत नाम है। रमेशराज से साहित्यिक विषयों से लगायत राजनीतिक मुद्दों पर बातें करना, विषय की घुमावदार गहराई से गुजरना है। रमेशराज साहित्यिक मानसून का नाम होने की स्थिति में अपनी पारिवेशिक सांघातिक ‘पारिस्थितिकी’ से फिलहाल जूझ रहा है किन्तु उसका अक्षर-अवदान साहित्य के शिवाले में स्वागतेय है। एक ही रचनाकार में इतनी सारी घनीभूत खूबियों की समन्वित-संदर्भित साक्षात्कार का दस्तावेजी परिणाम है। रमेशराज से मेरी मुलाकात अलीगढ़ धर्म समाज कॉलिज में पहले-पहले, कवि कथाकार समीक्षक डॉ. वेद प्रकाश ‘अमिताभ’ द्वारा आयोजित कवि-गोष्ठी में हुई। फिर साक्षात्कारी प्रक्रिया समारोहोपरांत पूर्ण हो सकी। मेरे प्रश्न सहित उनके उत्तर टेपांकित होकर, संक्षिप्त रूप में, रसज्ञ पाठकों की वैचारिक अदालत में बगैर किंचित परिवर्तन के ज्यों के त्यों प्रस्तुत हैं-
+मधुर नज़्मी
——————————————————————————————————–

मधुर नज़्मी-आप तेवरी विधा के जाने-माने हस्ताक्षर हैं। क्या आप बतलायेंगे कि ‘तेवरी आंदोलन’ की शुरुआत कब और किसने की?

रमेशराज- तेवरी आंदोलन की शुरुआत आठवें दशक के अन्त, नवें दशक के प्रारम्भ में हुई। इस विधा को ‘तेवरी’ नाम से अभिभूषित करने का श्रेय श्री ऋभ देव शर्मा देवराज और डॉ. देवराज को जाता है।

मधुर नज़्मी – आप तेवरी के विधागत स्वरूप को किस प्रकार स्पष्ट करेंगे?

रमेशराज-किसी भी विधा का संबंध उस विधान से होता है जिसके अन्तर्गत किसी भी प्रकार का चरित्र प्रस्तुत किया जाता है। विधाओं का निर्माण [ खासतौर पर कविता के संदर्भ में ] दो प्रकार से होता है। एक, वे विधाएँ जो छंद के आधार पर विकसित-निर्मित होती हैं- जैसे दोहा, चौपाई आदि। दूसरे प्रकार की विधाएँ कथ्य के आधार पर वर्गीकृत की जा सकती हैं- जैसे भजन, कलमा, मर्सिया, कसीदा आदि। जहाँ तक तेवरी के विधागत स्वरूप की बात है तो यह विधा कथ्य के आधार पर संज्ञापित की गई है। तेवरी के अंतर्गत उस तेवर [ चरित्र या भावभंगिमा ] को रखा गया है जो कुव्यवस्था के शिकार, लोक या मानव को [ शोषण, पीड़ा, यातना आदि के कारण ] असंतोष, आक्रोश, विरोध, विद्रोह आदि से सिक्त करता है।

मधुर नज़्मी- इसका अर्थ यह हुआ कि तेवरी में शृंगार-वर्णन वर्जित है। इस सदंर्भ में इसे ‘जनवादी’, ‘प्रगतिवादी’ मान्यताओं के अधिक निकट रखा जा सकता है। तब इसे [ तेवरी ] विधा के स्थान पर क्या नया काव्यवाद नहीं कहा जा सकता है?

रमेशराज- तेवरी कथित शृंगार की जरूर विरोधी है, क्योंकि इससे इस विधा पर व्यक्तिवाद के खतरे मँडलाने लगेंगे। मानव मूल्यों के खण्डित होने की संभावनाएँ बढ़ जायेंगी। लेकिन तेवरी में प्रेम या रति के औचित्य, सात्विकता का कहीं विरोध नहीं। दरअसल, तेवरी स्त्री या पुरुष को आगे के विकास की वस्तु मानकर नहीं चलती। इसके रिश्तों की सार्थकता, उस प्रेम-तत्त्व के भीतर देखी जा सकती है जो एक दूसरे के संघर्ष, सुख-दुःख के दायित्वबोध, साझेदारी और कर्त्तव्यों से जोड़ता है। इस संदर्भ में तेवरी जनवाद, प्रगतिवाद, मानवतावाद, साम्यवाद, यथार्थवाद जैसे किसी भी वाद से बँधकर चलने वाली विधा नहीं है। यह तो हमारे सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की एक ऐसी रागात्मक प्रस्तुति है जिसके माध्यम से सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना की जा सकती है और अप-संस्कृति का वैचारिक विरोध। इसलिए तेवरी एक ऐसी प्रगतिशील विधा है जिसकी दृष्टि यथार्थोन्मुखी होने के साथ-साथ सत्योन्मुखी भी है।

मधुर नज़्मी शिल्प के आधार पर तेवरी और ग़ज़ल का स्वरूप एक ही जान पड़ता है, तब इसे तेवरी कहने का औचित्य क्या है?

रमेशराज- बड़ा ही महत्वपूर्ण सवाल उठाया है आपने। सतही तौर पर देखने से ऐसा जरूर लगता है कि तेवरी और ग़ज़ल का शिल्प एक जैसा है लेकिन यदि हम सूक्ष्मता के साथ विवेचन करें तो तेवरी और ग़ज़ल के शिल्प में मूलभूत अन्तर है। तेवरी मात्रिक व वर्णिक छन्दों में लिखी जाती है जबकि ग़ज़ल कुछ निश्चित बह्रों में कही जाती है। तेवरी में मतला, मक्ता, शे’रों की निश्चित व्यवस्था जैसा प्रावधान नहीं होता। कुछ लोगों को इसकी अन्त्यानुप्रासिक व्यवस्था ग़ज़ल के रदीफ-काफियों जैसी व्यवस्था की नकल जान पड़ती है। ऐसे लोगों से विनम्रतापूर्वक बस यही निवेदन है कि इस प्रकार की व्यवस्था आदिकालीन कवि चन्द्रवरदायी से प्रारम्भ होती है और इस तरह की परम्परा का निर्वाह सूर, तुलसी, कबीर से लेकर घनानन्द, विद्यापति, केशव, देव, ठाकुर, रत्नाकर आदि के काव्य में बखूबी मिलती है। तेवरी चूँकि हिन्दी की काव्य विधा है, इस कारण इसकी अन्त्यानुप्रासिक व्यवस्था में प्रस्तुत कथनभंगिमा किसी हद तक कथात्मक है जबकि ग़ज़ल में कथात्मकता शुरू से ही वर्जित है।

मधुर नज़्मी- तो इसका अर्थ यह हुआ कि तेवरी उर्दू विरोधी हिन्दी भाषा की विधा है?

रमेशराज-अरे! यह क्या कह रहे हैं आप? तेवरी में हिन्दी-उर्दू जैसा कोई विवाद नहीं। तेवरी तो जन-जन की उस भाषा की अभिव्यक्ति है जो मुसलमानों, हिन्दुओं, पंजाबियों से लेकर हम समूचे हिन्दुस्तानियों की जुबान है।

मधुर नज़्मी- आज तेवरीकार जिस प्रकार का कथ्य तेवरी में दे रहे हैं, इस प्रकार का कथ्य तो ‘साहिर’, ‘फिराक’, ‘फैज अहमद फैज’, दुष्यन्त कुमार आदि प्रगतिशील शायरों, कवियों की ग़ज़लों में भी मौजूद है लेकिन उन्होंने इस तरह की रचनाओं को कभी ‘तेवरी’ नहीं कहा ?

रमेशराज-नज्मीजी, ‘ग़ज़ल’ का कोषगत अर्थ ‘प्रेमिका से प्रेमपूर्वक बातचीत’ है। यह शृंगाररस की ऐसी विधा है जिसमें नारी को भोग-विलास की वस्तु मानकर कभी साकी के रूप में प्रस्तुत किया गया है तो कभी रक्कासा [ नर्तकी ] के रूप में। यदि साहिर, फैज जैसे प्रगतिशील शायरों ने नारी को इन भाव-भंगिमाओं से काटकर उसे एक आदर्श पत्नी, समाज-सेविका, वीरांगना आदि के रूप में प्रस्तुत किया किन्तु एक पत्नी और एक ‘रखैल’ या ‘रक्कासा’ में अन्तर न कर सके तो इसके लिए किसे दोषी माना जाये? इसका उत्तर आप आप भी भली-भाँति जानते होंगे।

मधुर नज़्मी- तो क्या आपकी दृष्टि में ग़ज़ल के इस बदले हुए स्वरूप को लेकर दिये गये नाम जैसे ‘गीतिका’, ‘अनुगीत’, ‘अवामी ग़ज़ल’, ‘हिन्दी-ग़ज़ल’ आदि में भी कोई सार्थकता अन्तर्निहित नहीं है?

रमेशराज-ग़ज़ल यदि अपने स्वरूप से कट जायेगी तो उसमें कितनी ग़ज़लियत रह जायेगी, जिसके कारण हम उसे ग़ज़ल कह सकें? यदि भजन से ईश्वर या आलौकिक शक्ति के प्रति की गई विनती काट दी जाये तो वह कितना ‘भजन’ रह जायेगा? यह विचारणीय विषय है। अतः मेरी दृष्टि में ग़ज़ल के पूर्व लगाये ‘अवामी’, ‘हिन्दी’ जैसे विशेषण निरर्थक ही हैं। साथ ही विशेषणों को लगने से ‘ग़ज़ल’ शब्द की मर्यादा मरती है। वह हास्यास्पद और अवैज्ञानिक हो जाती है। जब उर्दू, हिन्दी की एक बोलीमात्र ही है तो ग़ज़ल को हिन्दीग़ज़ल कहना कितना तर्कसंगत है। ठीक इसी प्रकार ग़ज़ल के साथ ‘अवामी’ विशेषण जोड़ना, प्रेम के व्यक्तिवादी चरित्र को अवाम के बीच संक्रामक रोग की तरह फैलाना है। इस विशेषण से कथ्य की जनसापेक्षता किसी भी स्तर पर परिलक्षित नहीं होती। ‘गीतिका’ एक छंद है। आदरणीय नीरजजी छंद की बात कर रहे हैं या इसके माध्यम से किसी विशेष प्रकार के चरित्र की। यह आज तक स्पष्ट नहीं हो सका है। यही बात ‘अनुगीत’ के प्रति भी लागू होती है। मेरी राय में ग़ज़ल को सिर्फ ग़ज़ल रहने दिया जाये तो अनुचित नहीं होगा।

मधुर नज़्मी- यदि मान लिया जाय कि ‘तेवरी’ आक्रोश-विरोध-विद्रोह से युक्त तेवर से नामित है, यह तेवर तो हमें उपन्यास, कहानी, लघुकथा, कविता के अन्य विधाओं में भी दिखाई देता है, तब हम उन्हें तेवरी क्यों न कहें?

रमेशराज-तेवरी एक निश्चित अन्त्यानुप्रासिक व्यवस्था से युक्त एक ऐसी काव्य विधा है जिसमें सत्योन्मुखी संवेदनशीलता अन्तर्निहित है। तेवरी की संदर्भित व्यवस्था को दृष्टिगत न रखते हुए, यदि आप उसकी घुसपैंठ उपन्यास, कहानी आदि साहित्य विधाओं में करना चाहेंगे, तब मैं आपके प्रश्न के प्रति आपसे भी एक प्रश्न करना चाहूँगा-यदि ग़ज़ल का अर्थ प्रेमिका से प्रेमपूर्ण बातचीत है तो क्या समस्त शृंगारिक काव्य को ग़ज़ल में रखा जा सकता है?

मधुर नज़्मी- एक आखिरी सवाल और-कहीं तेवरी-आंदोलन भी अ-कविता, अगीत, अ-ग़ज़ल, आवामी ग़ज़ल, सहज कविता आदि की तरह लोप तो नहीं हो जायेगा? आपकी दृष्टि में तेवरी का भविष्य क्या है?

रमेशराज-नज़्मीजी हमारी दृष्टि फिलहाल तो तेवरी के प्रति संघर्ष पर टिकी है, परिणाम पर नहीं। तेवरी का भविष्य क्या रहेगा, यह तो आगामी समय ही बतला सकेगा।
[श्री हरिऔध् कला भवन, आजमगढ़ ]
———————————————————
रमेशराज, 15/109, ईसानगर, अलीगढ-202001

Language: Hindi
605 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
"सुबह की किरणें "
Yogendra Chaturwedi
वक्त बदलते ही चूर- चूर हो जाता है,
वक्त बदलते ही चूर- चूर हो जाता है,
सिद्धार्थ गोरखपुरी
वह मेरे किरदार में ऐब निकालता है
वह मेरे किरदार में ऐब निकालता है
कवि दीपक बवेजा
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती। आज मैं CA बन गया। CA Amit
कोशिश करने वाले की हार नहीं होती। आज मैं CA बन गया। CA Amit
CA Amit Kumar
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
गणतंत्र दिवस की बधाई।।
Rajni kapoor
तुझे ढूंढने निकली तो, खाली हाथ लौटी मैं।
तुझे ढूंढने निकली तो, खाली हाथ लौटी मैं।
Manisha Manjari
कभी सब तुम्हें प्यार जतायेंगे हम नहीं
कभी सब तुम्हें प्यार जतायेंगे हम नहीं
gurudeenverma198
प्रेमचंद के पत्र
प्रेमचंद के पत्र
Ravi Prakash
पर्यावरण
पर्यावरण
Madhavi Srivastava
💐Prodigy Love-23💐
💐Prodigy Love-23💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
अकेला
अकेला
Vansh Agarwal
सापटी
सापटी
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
संभावना
संभावना
Ajay Mishra
बुद्ध पुर्णिमा
बुद्ध पुर्णिमा
Satish Srijan
There is no shortcut through the forest of life if there is
There is no shortcut through the forest of life if there is
सतीश पाण्डेय
बचपन की सुनहरी यादें.....
बचपन की सुनहरी यादें.....
Awadhesh Kumar Singh
तेरी कमी......
तेरी कमी......
Abhinay Krishna Prajapati-.-(kavyash)
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
शायरी - ग़ज़ल - संदीप ठाकुर
Sandeep Thakur
खुद की नज़रों में भी
खुद की नज़रों में भी
Dr fauzia Naseem shad
गम खास होते हैं
गम खास होते हैं
ruby kumari
नयी भोर का स्वप्न
नयी भोर का स्वप्न
Arti Bhadauria
“बिरहनी की तड़प”
“बिरहनी की तड़प”
DrLakshman Jha Parimal
बासी रोटी...... एक सच
बासी रोटी...... एक सच
Neeraj Agarwal
■ जयंती पर नमन्
■ जयंती पर नमन्
*Author प्रणय प्रभात*
उन सड़कों ने प्रेम जिंदा रखा है
उन सड़कों ने प्रेम जिंदा रखा है
Arun Kumar Yadav
बादल को रास्ता भी दिखाती हैं हवाएँ
बादल को रास्ता भी दिखाती हैं हवाएँ
Mahendra Narayan
राजनीति के नशा में, मद्यपान की दशा में,
राजनीति के नशा में, मद्यपान की दशा में,
जगदीश शर्मा सहज
किस कदर
किस कदर
हिमांशु Kulshrestha
पिताजी का आशीर्वाद है।
पिताजी का आशीर्वाद है।
Kuldeep mishra (KD)
सुरक्षा
सुरक्षा
Dr. Pradeep Kumar Sharma
Loading...