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18 Oct 2017 · 2 min read

निंदा और आज की राजनीति

निंदा और निन्दक दोनों ही एक सिक्के के दो पहलू हैं जैसे नदी के दो किनारे जो मिलते तो कभी नहीं किन्तु एक के बीना दुसरा अधुरा है।….. ऐ शब्द लगते तो एक दुसरे के पुरक हैं किन्तु समयानुसार इनके जगह बदलते रहते है।
वही आलोचक की एक अलग ही कैटेरीया होती है उसके नजर में न कोई आम और ना ही कोई खास होता है। आलोचक का बस एक ही काम है आलोचना करना भले ही सामने कोई भी क्यों न हो।वैसे देखा जाय तो आलोचक का एक अच्छे समाज के निर्माण में अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है ।
अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी शक्ति, पद, प्रतिष्ठा और धन पाकर बौखला जाता है और उल्टे – सिधे कार्य करने लगता है, उस वक्त एक आलोचक की भूमिका अत्यधिक महत्वपूर्ण हो जाती है।कठिन से कठिन परिस्थिति में भी आलोचक अपने कर्तव्यों के निर्वहन से विलग नहीं होता।आलोचक सुधारवादि विचार धारा रखता है जबकि निन्दक द्वेषपूर्ण विचारधारा का स्वामी होता है और उसे परिस्थिति से कोई लेना देना नहीं होता, परिस्थिति चाहे जो भी हो वह अपने स्वाभावगत बस निन्दा हीं करेगा।
आलोचक को शुभचिंतक हीं समझे ।वहीं निन्दक आपका दिखावटी हितैषी भी हो सकता है और कट्टर शत्रु भी परन्तु दोनो की अभिलाषा केवल और केवल आपके नुकसान की ही होती है।हमने अक्सर देखा है भारतीय राजनीति में दोनों ही तरह के लोग मिलते है।आलोचक आपके कार्य, कार्यशैली की आलोचना करता है ताकि उसमे अमुलचूल सुधार हो सके जबकि विपक्षी दल निन्दक होते हैं आप अच्छा करें या बुरा वे तो बस निन्दा ही करेंगें।
बुरे कार्यों की निन्दा समझ में आती है किन्तु अच्छे कार्यों की निन्दा यह सर्वथा समझ से परे है।
फिर भी हम कुछ कर नहीं सकते कारण आज के राजनीति का चरित्र ही कुछ ऐसा है।
…पं.संजीव शुक्ल “सचिन”

Language: Hindi
Tag: लेख
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