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29 Jul 2017 · 1 min read

दोराहे

श्मशान और कब्रिस्तान के
दोराहे में खड़ा हुँ मैं
कन्धो पर अपनी ही
बेजान लाश को उठाए
अजीब उलझन में हुँ,
सोच रहा हुँ अब
अपनी लाश का क्या करुँ,
अगर जला दूँ तो
मैं हिन्दू कहलाऊँ ,
और अगर दफन करुँ
तो मुसलमान कहलाऊँ ,
लेकिन मैं नहीं चाहता
मुझे इंसान के बजाय लोग
हिन्दू या मुसलमान पुकारे
मजहब के नाम पर लोग
मेरे लाश का बंटवारा करें;
जब मैं जिन्दा था तबभी
लोग पूछते थे मुझ से
कि मैं हिन्दू हुँ या मुसलमान,
और अब जब मर गया हुँ
तो फिर वही सवाल
खड़ा है मेरे रूबरू;
मुझे मालूम नही क्यों
लोग इंसान के बजाय
मजहब से प्यार करते है,
शायद उनको मालूम नही
मजहब नही इंसान का
इंसान ही सहारा बनते है;
मेरे माबूद तुझ से मेरी
इल्तिजा है बस इतनी
अगले जनम में मुझे
तुम बनाना पंछी या जानवर
जिनकी न होती कोई जाति
और न कोई मजहबी शोर।

Language: Hindi
643 Views
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