Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
20 Mar 2017 · 7 min read

वो एक रात 3

#वो एक रात 3

चीख सुनकर रवि हैरत में पड़ गया तथा थोड़ा घबरा भी गया कहीं नीलिमा को कुछ हो तो नहीं गया। वह तुरंत किचन की ओर भागा। किचन में नीलिमा की हालत देखकर रवि के होश उड़ गए। नीलिमा बेहोश थी। तभी उसे खिड़की से बाहर चपर-चपर की आवाज सुनाई दी। वह खिड़की की तरफ दौड़ा। रवि की आँखें फट गई। अपने सामान्य कद से बहुत बडी़ एक स्याह बिल्ली छज्जे पर बैठी थी। उसके मुँह में मछली का टुकड़ा था। पता नहीं क्यूँ मगर उस बिल्ली की दिन में चमकती आँखों को देखकर रवि के शरीर में सिहरन सी दौड़ गई। थोड़ी देर में ही उस बिल्ली ने एक बहुत लंबी छलांग लगाई और मियाऊँ मियाऊँ करती हुई सामने वाले पेड़ पर पहुँच गई। इतनी लंबी छलांग! विस्मय में रवि की आँखें फटी ही रह गई। अचानक उसे नीलिमा का ख्याल आया। किचन की हालत हुए हादसे की बानगी कह रही थी। नीलिमा ने फ्रीज से मछलियाँ निकालकर काटनी शुरू की होगी और शायद खिड़की के रास्ते से बिल्ली मछलियों की सुगंध पाकर किचन में आ गई होगी। बिल्ली बहुत बडी़ थी। कहीं नीलू को कोई चोट तो नहीं पहुँचा दी बिल्ली ने।
रवि ने नीलू को बैड पर लिटाया और पानी के छींटें मारे। नीलू होश में आते ही हड़बड़ा कर उठी। और रवि को सामने पाकर थोड़ी संयत हुई और रवि के गले लग गई। उसकी आँखों में भय साफ दिखाई दे रहा था।
“नीलू क्या हुआ था? तुम बेहोश क्यूँ हुई? ”
नीलू घबरा रही थी। रवि ने उसे पानी पिलाया।
“आखिर बात क्या हुई नीलू? ” रवि ने प्यार से पूछा।
नीलू अब काफी सँभल गई थी।
रवि तुमने देखा क्या? बहुत ही बडी़ और भयानक बिल्ली थी वो!
और नीलू ने जो बताया रवि की आँखें हैरत में फैल गई।
“रवि मैं जैसे ही तुम्हारे लिए चाय बना रही थी कि अचानक मुझे कुछ अजीब सी आवाजें सुनाई दी। ऐसा लग रहा था जैसे कोई कुछ बड़बडा़ते हुए दीवार खुरच रहा हो। मैं जैसे ही खिड़की की और गई तो तुरंत एक बहुत ही भयंकर बिल्ली ने मेरी ओर छलांग लगा दी। और……. और….. ”
“और क्या नीलू” रवि ने हैरत में जल्दी से पूछा।
नीलू ने डरते हुए बताया “बिल्ली का मुँह खून में सना हुआ था। फिर…… फिर जब उसने मे….. मेरी ओर छलांग ल.. लगाई तो मैं चिल्लाकर बेहोश हो गई।”
“लेकिन किचन में तो……. ” रवि ने चौंक कर कहा।
“किचन में क्…. क्या……?” नीलू ने घबराई आवाज में पूछा।
इतने में रवि ने किचन की ओर दौड़ लगा दी। नीलू भी रवि के पीछे हो ली। और……..
किचन में सब कुछ सामान्य था। पर हाँ…. गैस चल रही थी और चूल्हे पर रखी चाय के जलने की बदबू आ रही थी। रवि ने फर्श को गौर से देखा। कोई मछली नहीं थी वहाँ। नीलू ने गैस बंद किया और रवि ने फ्रीज खोलकर देखा। वहाँ भी कोई मछली नहीं रखी थी। रवि ने नीलू से कुछ पूछना चाहा परंतु नीलू और न डर जाए मन में रहस्यों का तूफान लेकर रवि नीलू को बैडरूम में ले आया और उसे लिटा दिया।
“थोड़ा आराम करो नीलू, कुछ नहीं बस बिल्ली ही तो थी।” रवि ने समझाने के अंदाज में कहा। लेकिन खुद इन घटनाओं के कारण रवि का दिमाग बुरी तरह से उलझा हुआ था।
पहले वो लड़की और अब ये बिल्ली का रहस्य। दोनों घटनाओं के लिंक को जोड़ने में लगे रवि को एक बात ने झटका दिया। उसके होठ सिकुड़ते चले गए। उसे कुछ अचानक याद आया।
**************************************************
दिनेश, सुसी, मनु और इशी तय किए हुए स्थान पर इकट्ठे हो गए। उन्होंने एक बोलेरो ले ली थी घूमने के लिए।
और चारों ने अपने-अपने घरवालों को बताया कि काॅलेज की तरफ से दो दिन के लिए पिकनिक का टूर जा रहा है। और कमाल की बात देखिए, चारों के घरवालों ने ये भी देखने की कोशिश नहीं की कि क्या सच में कोई टूर जा रहा है या नहीं। और ये भी नहीं पूछा कि टूर जा कहाँ रहा है।
सुसी और इशी की खूबसूरती आज देखते ही बनती थी। दिनेश ने सुसी को कई बार प्रपोज करने की कोशिश भी की थी, लेकिन सुसी ने कोई इन्ट्रेस्ट नहीं दिखाया। ओनली एण्ड ओनली फ्रैंडसिप, नथिंग मोर…… और फिर उस दिन के बाद दिनेश ने कोई कोशिश नहीं की। मनु को इशी पसंद करती थी लेकिन उसने मनु को कभी कुछ नहीं कहा था। मनु लव-शव के मैटर से दूर रहता था। और शायद यही कारण था कि इशी उसे अपने मन की बात कभी कह नहीं पाई थी। मनु को अनजान जगह जाना पसंद तो था लेकिन डरता बहुत था।
और इस तरह उन्होंने अपना सफर शुरू कर दिया था। अन्नी काका ने दिनेश से पूछने की कोशिश भी की थी टूर कहाँ जाना था परंतु दिनेश ने बात आई-गई कर दी थी। अन्नी काका फिर भी आज कुछ असहज महसूस कर रहे थे खुद को। उनको अनायास ही घबराहट हो रही थी परंतु उन्होंने सिर को झटक दिया। परंतु दिनेश को अपना ख्याल रखने की चेतावनी जरूर दे दी थी और एक बात उन्होंने और समझाई कि तुरंत आकर्षित करने वाली चीज पर कभी विश्वास न करें पहले जाँच पड़ताल कर लें उसके बाद ही कोई निर्णय करें। दिनेश हँस पडा़ था अन्नी काका की बात सुनकर।
“काका मैं अब बच्चा नहीं रह गया हूँ।”
“बेटा फिर भी बाहरी दुनिया को जितना मैंने करीब से देखा है तुमने नहीं।” अन्नी काका ने शून्य में निहारते हुए कहा।
“बेटा ये दुनिया बाहर से जैसी दिखती है न असल में वैसी होती नहीं। हम जो सोचते हैं न वैसा होता नहीं और जब तक हम सँभल पाएँ दुनिया अपना रंग दिखा चुकी होती है।” काका दिनेश को गंभीरता से समझा रहे थे परंतु उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया और बाय कहकर बाहर को निकल गया।
सुसी, इशी और मनु से तो उसके घर के सदस्यों से कुछ खास बातचीत हुई ही नहीं।
और इस तरह इन चारों का कारवाँ इंदीवर गाँव के पास पहुँच गया था। सुबह के11 बज चुके थे। चारों ने कुछ चाय-नाश्ते की सोची। वे एक चाय की दुकान पर रुक गए।
” चाह के साथ बी कछु लोगे बबुआ” चाय वाले ने पूछा जो एक पगड़ी बाँधे हुए था। वैसे इंदीवर गाँव के सभी मर्द एक अलग ही तरह से पगड़ी बाँधते थे। इस विशेष रूप से बाँधी गई पगड़ी को देखकर कोई भी आसानी से पहचान सकता था कि यह इंदीवर गाँव का रहने वाला है। इस गाँव के अलावा अन्य कहीं भी लोग ऐसी पगड़ी नहीं बाँधते थे। छोटी सी बात होते हुए भी यह अपने में एक असामान्य बात थी। ज्यादा लोग तो नहीं रहते थे परंतु क्षेत्रफल में अच्छा खासा था यह गाँव। शाम के चार बजने के बाद तो यह गाँव वीराना हो जाता था। उत्तमनगर के पीछे से आने वाला यह रास्ता इस गाँव से दो हिस्सों में बँट जाता था। एक रास्ता पूरब की तरफ 56 किमी दूर परस्तीनगर शहर की ओर चला जाता था तथा पश्चिम की ओर जाने वाला रास्ता उत्तमनगर के विशाल जंगलों की ओर चला जाता था। कुछ किमी आगे जाकर यह कच्चे रास्ते में बदल जाता था जो थोड़ा और आगे जाकर जंगल में अंदर चला जाता था।
कच्चा रास्ता शुरू होने से पहले एक नोटिस बोर्ड लगा हुआ था।
“यहाँ से आगे जाना कानूनी रूप से अवैध है। यह क्षेत्र खतरनाक है।”
सुसी ने कुछ बिस्किट और नमकीन लाने के लिए बोला।
“अरे अपने पास इतना सामान है खाने पीने का, क्यूँ खामखा खरीद रही हो।” मनु ने कहा।
“क्यूँ यही खाना चाहते हो सब, आगे जंगल की घास चबाओगे।” इशी बोली।
दिनेश और सुसी हँस पडे़। मनु को थोड़ा सा नागवार गुजरा। इशी ने तुरंत कहा-“इट्स जोकिंग यार।” मनु नोरमल हो गया।
चारों चाय पी ही रहे थे। इतने में एक अजीब सा इंसान उनके पास आकर बैठ गया। उसके सिर पर पगड़ी नहीं थी। बाल उसके रस्सी की तरह ऐंठे हुए थे। चेहरे पर चेचक के दाग थे। उम्र में अधेड़ लग रहा था वह। उसके कपड़े तो इंदीवर गाँव वालों से ही मिलते जुलते थे। लेकिन बहुत ही मैले कुचैले कपडे़ पहन रखे थे उसने।
चाय मँगवाई उसने और इन चारों दोस्तों की बातों में खास इंट्रेस्ट ले रहा था वह। इशी को उसका अजीब सी नजरों से देखना अच्छा नहीं लग रहा था। तभी अचानक मनु उससे सवाल कर बैठा।
“क्यूँ भई कभी इन जंगलों में गए हो? घूमने के लिए कौन सी जगह सही रहेगी वहाँ!”
“का मतबल” मानो उछल पडा़ वह। चाय वाला भी मनु की बात को सुनकर वहीं चला आया।
“का बात करते हो बाबूजी, आप उन जंगलों में जाना चाहते हो!” चाय वाले ने आश्चर्य से पूछा।
“ओफ कोर्स” दिनेश ने कहा।
“शापित जंगल है यह। खा जाता है इसमें जाने वाले को। इसमें जाने वाला आज तक कोई वापिस नहीं लौटा है।” उस चेचक के दाग वाले ने बोला।
“क्या” मनु डर गया था। इशी ने उसे इशारा किया और उसका हाथ दबा दिया।
“ऐसा कुछ नहीं ” इशी ने कहा। “हो सकता है ये बातें जानबूझकर फैलाई गई हो।”
“अरे ऐसा ही है।” दिनेश ने कहा। हम आएँगे लौटकर। और तुम्हारी दुकान पर चाय भी पिएँगे बैठकर।”
“पगलाओ मत बबुआ। इस जंगल की डंकपिशाचिनों से तो चार बजे के बाद इहाँ गाँव मा भी बीरानगी छा जाती है।” चाय वाले ने सिहरते हुए कहा।
“गाँव के कुत्तों तक को भी खा जाती हैं ये” उस आदमी ने जोर से बोलते हुए कहा।
“डंकपिशाचिनी” चारों के मुँह से एक साथ निकला।
“अब ये क्या बला हैं! ” मनु ने इंट्रेस्टड होकर पूछा। अब सुसी थोड़ा डर गई थी।
अचानक गाँव से शोर-शराबे की आवाज आने लगीं। चाय वाले और उस चेचक के दाग वाले ने एक दूसरे की ओर देखा और फिर………….
“लगता है आज फिर कोई निवाला बन गया।” इतना कहकर उस चेचक के दाग वाले ने जिधर से आवाजें आ रही थी उधर दौड़ लगा दी।
चायवाले ने भी फटाफट दुकान पर ताला लगाया और उन चारों से कहा-“बबुआ वहाँ जाने का बारे मा नाहीं सोचो। यही तुहार भला मा है। नादान नाहीं बनो। हड्डियाँ तक चबा डालती हैँ डंकपिशाचिनियाँ।” इतना कहकर चायवाला भी आवाज की दिशा में दौड़ गया।
चारों कुछ देर शांति से बैठे रहे।
“आज के जमाने में भी लोग ऐसी-ऐसी बातों पर विश्वास करते हैं।” इशी ने मौन तोडा़।
“हो सकता है बात में ज्यादा नहीं तो थोड़ी ही सच्चाई हो।” सुसी ने कहा।
“चलो पहले वहाँ चलकर देखते हैं, आखिर ये शोर कैसा है।” दिनेश ने कहा।
“हाँ ठीक है चलो।”
और फिर वे चारों भी शोर की तरफ चल दिए। शोर थोड़ा और बढ़ गया था………..।
सोनू हंस

Language: Hindi
303 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
कोरोना और पानी
कोरोना और पानी
Suryakant Dwivedi
■ “दिन कभी तो निकलेगा!”
■ “दिन कभी तो निकलेगा!”
*Author प्रणय प्रभात*
नफ़रत कि आग में यहां, सब लोग जल रहे,
नफ़रत कि आग में यहां, सब लोग जल रहे,
कुंवर तुफान सिंह निकुम्भ
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
প্রতিদিন আমরা নতুন কিছু না কিছু শিখি
Arghyadeep Chakraborty
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
बना है राम का मंदिर, करो जयकार - अभिनंदन
बना है राम का मंदिर, करो जयकार - अभिनंदन
Dr Archana Gupta
सूर्य अराधना और षष्ठी छठ पर्व के समापन पर प्रकृति रानी यह सं
सूर्य अराधना और षष्ठी छठ पर्व के समापन पर प्रकृति रानी यह सं
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
3126.*पूर्णिका*
3126.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मैं तो महज वक्त हूँ
मैं तो महज वक्त हूँ
VINOD CHAUHAN
*बस एक बार*
*बस एक बार*
Shashi kala vyas
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
*संपूर्ण रामचरितमानस का पाठ : दैनिक रिपोर्ट*
Ravi Prakash
ऐसा इजहार करू
ऐसा इजहार करू
Basant Bhagawan Roy
राष्ट्र हित में मतदान
राष्ट्र हित में मतदान
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
नारी है नारायणी
नारी है नारायणी
ओम प्रकाश श्रीवास्तव
दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद।
दमके क्षितिज पार,बन धूप पैबंद।
Neelam Sharma
आओ दीप जलायें
आओ दीप जलायें
डॉ. शिव लहरी
उसे खो देने का डर रोज डराता था,
उसे खो देने का डर रोज डराता था,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
चक्षु द्वय काजर कोठरी , मोती अधरन बीच ।
चक्षु द्वय काजर कोठरी , मोती अधरन बीच ।
पंकज पाण्डेय सावर्ण्य
Chhod aye hum wo galiya,
Chhod aye hum wo galiya,
Sakshi Tripathi
ऐसे ना मुझे  छोड़ना
ऐसे ना मुझे छोड़ना
Umender kumar
"भूल गए हम"
Dr. Kishan tandon kranti
अपने सुख के लिए, दूसरों को कष्ट देना,सही मनुष्य पर दोषारोपण
अपने सुख के लिए, दूसरों को कष्ट देना,सही मनुष्य पर दोषारोपण
विमला महरिया मौज
मैं सरिता अभिलाषी
मैं सरिता अभिलाषी
Pratibha Pandey
हर मौहब्बत का एहसास तुझसे है।
हर मौहब्बत का एहसास तुझसे है।
Phool gufran
हर चीज़ मुकम्मल लगती है,तुम साथ मेरे जब होते हो
हर चीज़ मुकम्मल लगती है,तुम साथ मेरे जब होते हो
Shweta Soni
नशा
नशा
Ram Krishan Rastogi
जुबां बोल भी नहीं पाती है।
जुबां बोल भी नहीं पाती है।
नेताम आर सी
माँ सच्ची संवेदना...
माँ सच्ची संवेदना...
डॉ.सीमा अग्रवाल
**पी कर  मय महका कोरा मन***
**पी कर मय महका कोरा मन***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
नव संवत्सर आया
नव संवत्सर आया
Seema gupta,Alwar
Loading...