Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
3 Nov 2016 · 6 min read

लोककवि रामचरन गुप्त एक देशभक्त कवि – डॉ. रवीन्द्र भ्रमर

अलीगढ़ के ‘एसी’ गांव में सन् 1924 ई. में जन्मे लोककवि रामचरन गुप्त ने अपनी एक रचना में यह कामना की है कि उन्हें देशभक्त कवि के रूप में मान्यता प्राप्त हो। यह कामना राष्ट्रीय आन्दोलन के उस परिवेश में उपजी, जिसमें स्वतंत्रता की मांग अत्यन्त प्रबल वेग में मुखर हो उठी थी। ब्रिटिश साम्राज्यवाद के शिकंजे में कसा देश शोषण-अन्याय और दमन का शिकार बना हुआ था। चारों ओर गरीबी, भुखमरी, जहालत और बीमारी का बोल-बाला था।
लोककवि रामचरन का जन्म साम्राज्यवादी शोषण के ऐसे ही राष्ट्रव्यापी अंधकार की छाया में हुआ। इनका बचपन बड़ी गरीबी में बीता था। किशोरवस्था में इन्होंने एक परिवार में बर्तन मांजने का काम भी किया। इसी के साथ-साथ ताले बनाना भी सीख लिया और आगे चलकर तालों का एक कारखाना भी लगाया। किन्तु कई कारणों से इसमें विशेष सफलता नहीं मिली। गोस्वामी तुलसीदास के शब्दों में ‘डासत ही सब निसा बिरानी, कबहुं न नाथ नींद भर सोयौ’- जैसी अनवरत संघर्षमय परिस्थिति में, लगभग सत्तर वर्ष की अवस्था में इनका निधन हो गया।
कविवर अज्ञेय ने एक कविता में कहा है-‘दुःख सबको मांजता है और जिसे मांजता है, उसे तप्त कुन्दन जैसा खरा बना देता है’। रामचरन गुप्त के संघर्षमय जीवन और संवेदनशील हृदय ने इन्हें कविता ओर उन्मुख किया। ये ज्यादा पढ़े-लिखे तो थे नहीं, अतः इनके व्यक्तित्व का विकास लोककवि के रूप में हुआ। दिन-भर मेहनत-मजदूरी करते, चेतना के जागृत क्षणों में गीत रचने-गुनगुनाते और रात में बहुधा ‘फूलडोलों’ में जाते, जहां इनके गीत और जिकड़ी भजन बड़े चाव से सुने जाते थे। ये सच्चे अर्थों में एक सफल लोककवि थे। इन्होंने ब्रज की लोकरागिनी में सराबोर असंख्य कविताएं लिखीं जो किसी संग्रह में प्रकाशित नहीं होने के कारण अव्यवस्था के आलजाल में खो गईं।
लोककवि रामचरन गुप्त के सुपुत्र श्री रमेशराज ने इनकी कुछ कविताएं संजोकर रख छोड़ी हैं , जिनके आधार पर इनके कृतित्व का यथेष्ट मूल्यांकन सम्भव हो सका है। रमेशराज हिन्दी कविता की नयी पीढ़ी के एक सफल हस्ताक्षर हैं। इन्हें हिन्दी की तेवरी विधा का उन्नायक होने का श्रेय प्राप्त है। अतः इन पर यह दायित्व आता है कि ये अपने स्वर्गीय पिता की काव्य-धरोहर को सहेज-संभाल कर रखें और चयन-प्रकाशन तथा मूल्यांकन के द्वारा उसे उजागर कराएं।
लोकगीत की संरचना की विषय में एक धारणा यह है कि अगर कोई पूछे कि यह गीत किसने बनाया तो तुम कह देना कि वह दुःख के नीले रंग में रंगा हुआ एक किसान था। इसका आशय यह है कि लोकगीतों की रचना लोकजीवन की वेदना से होती है और इनका रचयिता प्रायः अज्ञात होता है। वह समूह में घुल-मिलकर समूह की वाणी बन जाता है। लोकगीत मौखिक परम्परा में जीवित रहते हैं और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक की यात्रा करते हैं।
लोकगीतों की एक कोटि यह भी मानी जाती है जिसकी रचना लोकभाषा और लोकधुनों में किसी ज्ञात और जागरूक व्यक्ति द्वारा की जाती है। लोककवि रामचरन गुप्त की रचनाएं लोककाव्य की इसी कोटि के अंतर्गत आती हैं। इन्होंने राष्ट्रीय, सामाजिक चेतना के कुछ गीतों के अतिरिक्त, मुख्यतः ‘जिकड़ी भजन’ लिखे हैं। ‘जिकड़ीभजन’ ब्रज का एक अत्यन्त लोकप्रिय काव्यरूप है। इसमें भक्ति-भावना का स्वर प्रधान होता है और ये लोकगायकों की मंडलियों द्वारा गाये जाते हैं। ये मंडलियां आपस में होड़ बदकर, अपने-अपने जिकड़ी भजन प्रस्तुत करती हैं। गीतों में ही प्रश्नोत्तर होते हैं। जिस मंडली के उत्तर सार्थक और सटीक होते हैं, उसी की जीत होती है। रामचरन गुप्त को इस कला में महारत हासिल थी। ये जिस टोली में होते, विजय उसी की होती और जीत का सेहरा इनके सर बांधा जाता था।
इस लोककवि की रचनाओं को भाव-सम्पदा की दृष्टि से तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। इनकी भाषा तो बोलचाल की परम्परागत ब्रजभाषा है। कहीं-कहीं खड़ी बोली की भी चाशनी दिखाई पड़ती है। शैली की दृष्टि से अधिकांश रचनाएं जिकड़ी भजन और कुछ रचनाएं प्रचलित लोकधुनों की पद्धति में रची गई हैं किन्तु भावानुभूति अथवा विषय की दृष्टि से इनका रचनाफलक विस्तृत है। कवि रामचरन गुप्त की रचनाओं की पहली श्रेणी राष्ट्रीयता की भावना से युक्त गीतों की है। इनमें स्वाधी नता-संग्राम की चेतना और स्वाधीनता के लिए बलि-पथ पर जाने वाले वीरों के साहस एवं ओज का मार्मिक वर्णन किया गया है।
राष्ट्र-प्रेम से भरे भाव की एक रचना के कुछ अंश द्रष्टव्य हैं-
‘ए रे रंगि दै रंगि दे रे वीरन रंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
पहलौ रंग डालि दइयो तू बिरन मेरे आजादी कौ,
और दूसरौ होय चहचहौ, इंकलाब की आंधी कौ,
ए रे घेरा डाले हों झांसी पै अंगरेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
कितनी हिम्मत, कितना साहस रखतौ हिन्दुस्तान दिखा,
फांसी चढ़ते भगत सिंह के अधरों पै मुस्कान दिखा,
ए रे रामचरन कवि की रचि वतनपरस्त इमेज, चुनरिया मेरी अलबेली।
कवि की ‘वतनपरस्त इमेज’ के सन्दर्भ में दो उदाहराण इस प्रकार हैं- इनमें भारत के वीर जवानों की वीरता, शक्ति और साहस का वर्णन बड़े मुखर स्वरों में किया गया है-
‘‘पल भर में दें तोड़ हम, दुश्मन के विषदन्त।
रहे दुष्ट को तेग हम और मित्र को संत।।
अरि के काटें कान
हम भारत के वीर जवान
न बोदौ हमकूं बैरी जान
अड़े हम डटि-डटि कें।
हर सीना फौलाद
दुश्मन रखियौ इतनी याद
मारौ हमने हर जल्लाद
लड़ें हम डटि-डटि कें।
यह रचना भारत-पाक और भारत-चीन युद्ध के परिप्रेक्ष्य में रची गई थी।
स्वाधीनता प्राप्ति के बाद स्वाधीनता और देश की रक्षा का भाव रामचरन गुप्त की रचनाओं में दिखाई पड़ता है-
हम बच्चे मन के सच्चे हैं, रण में नहीं शीश झुकायेंगे,
हम तूफानों से खेलेंगे, चट्टानों से टकरायेंगे।
वीर सुभाष, भगत जिस आजादी को लेकर आये थे
उस आजादी की खातिर हम अपने प्राण गवायेंगे।
इन उदाहरणों से ‘विषदंत तोड़ना’, ‘कान काटना’, ‘सीना फौलाद होना’, ‘तूफानों से खेलना’, ‘चट्टानों से टकराना’ इत्यादि मुहावरों के संयोग से वीरता और ओज की निष्पत्ति सहजरूप से हुई है। इससे कवि की भाषाशक्ति का पता चलता है।
दूसरी श्रेणी में सामाजिक सरोकार की रचनाएं आती हैं। कहीं महंगाई, चोरबाजारी और गरीबी की त्रासदी को उभारा गया है और कहीं वीरता, दानशीलता, संयम, साहस, विद्या, विनय और विवेक आदि जीवनमूल्यों को रचना-सूत्र में पिरोया गया है-
‘‘जा मंहगाई के कारन है गयो मेरौ घर बरबाद
आध सेर के गेहूं बिक गये, रहे हमेशा याद।
सौ रुपया की बलम हमारे
करहिं नौकरी रहहिं दुखारे
पांच सेर आटे कौ खर्चा, है घर की मरयाद।
पनपी खूब चोरबाजारी
कबहू लोटा, कबहू थारी
धीरे-धीरे सब बरतन लै गये पीठ पर लाद।।’’
उच्चतर जीवनमूल्यों के सन्दर्भ में एक यह रचना अवलोकनीय है, जिसमें कवि ने किसी जननी से ऐसे पुत्र को जन्म देने की अनुनय की है जो दानी हो या वीर हो-
‘‘जननी जनियौ तो जनियौ ऐसौ पूत, ए दानी हो या हो सूरमा।
सुत हो संयमशील साहसी
अति विद्वान विवेकशील सत् सरल सज्ञानी
रामचरन हो दिव्यदर्श दुखहंता दानी
रहै सत्य के साथ, करै रवितुल्य उजाला।
जनियो तू ऐसौ लाला।।’’
लोककवि रामचरन गुप्त का वास्तविक रूप इनके जिकड़ी भजनों में दिखाई पड़ता है। ऐसा प्रतीत होता है कि कठिन जीवन-संघर्ष ने इन्हें ईश्वरोन्मुख बना दिया था, इसे कवि की वतनपरस्ती का भी एक अंग माना जा सकता है क्योंकि देशभक्ति के अन्तर्गत देश की संस्कृति, आध्यात्मिक चेतना का भी विन्यास होता है। राष्टकवि मैथिलीशरण गुप्त की कृतियों के माध्यम से इस अवधारणा को भली प्रकार समझा जा सकता है। ध्यातव्य यह भी है-जिकड़ी भजनों का कथ्य और मूल स्वर धार्मिक ही होता है। अस्तु, रामचरन गुप्त के जिकड़ी भजनों में धार्मिक चेतना और भक्तिभावना यथेष्ट रूप में मुखरित हुई है।
इनकी इस कोटि की रचनाओं के दो वर्ग हैं। एक में रामावतार की आरती उतारी गई है तो दूसरे में कृष्णावतार का कीर्तन किया गया है।
रामकथा से सन्दर्भित दो उदाहरण दर्शनीय हैं-
‘‘राम भयौ वनगमन एकदम मचौ अवध में शोर
रोक रहे रस्ता पुरवासी चलै न एकहू जोर।
त्राहि-त्राहि करि रहे नर-नारी
छोड़ चले कहां अवध बिहारी,
साथ चलीं मिथिलेश कुमारी और सौमित्र किशोर।
———
श्री रामचन्द्र सीता सहित खड़े शेष अवतार
केवट से कहने लगे सरयू पार उतार।
जल में नाव न डारूं , नैया बीच न यूं बैठारूं
भगवन पहले चरण पखारूं, करूं तब पार प्रभू!
भाषा-कवियों में गोस्वामी तुलसीदास से लेकर पंडित राधेश्याम कथावाचक तक ने इन प्रसंगों का मार्मिक वर्णन किया है। रामचरन गुप्त भी इनमें अछूते नहीं रहे। कृष्णकथा के संदर्भ में इन्होंने भागवत आदि महाभारत के प्रसंगों को अनुस्यूत किया है। विनय भावना की इनकी एक रचना इस सन्दर्भ में दृष्टव्य है-
‘‘बंसी बारे मोहना, नंदनंदन गोपाल
मधुसूदन माधव सुनौ विनती मम नंदलाल।
आकर कृष्ण मुरारी, नैया करि देउ पार हमारी
प्रभु जी गणिका तुमने तारी, कीर पढ़ावत में।
वस्त्र-पहाड़ लगायौ, दुःशासन कछु समझि न पायौ,
हारी भुजा अन्त नहिं आयौ, चीर बढ़ावत में।’’
ब्रज में लोककवियों और लोकगायकों की एक परम्परा रही है। अलीगढ़ जनपद में नथाराम गौड, छेदालाल मूढ़, जगनसिंह सेंगर और साहब सिंह मेहरा जैसे रचनाकारों ने इसे आगे बढ़ाया है। इस लोकधर्मी काव्यपरम्परा में रामचरन गुप्त का स्थान सुनिश्चित है। राष्ट्रीय-सामाजिक चेतना के गीतों और जिकड़ी भजनों की संरचना में इनका योगदान सदैव स्वीकार किया जायेगा।

Language: Hindi
Tag: लेख
526 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
विश्व हुआ है  राममय,  गूँज  सुनो  चहुँ ओर
विश्व हुआ है राममय, गूँज सुनो चहुँ ओर
महावीर उत्तरांचली • Mahavir Uttranchali
कौन उठाये मेरी नाकामयाबी का जिम्मा..!!
कौन उठाये मेरी नाकामयाबी का जिम्मा..!!
Ravi Betulwala
जो हमारे ना हुए कैसे तुम्हारे होंगे।
जो हमारे ना हुए कैसे तुम्हारे होंगे।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
कितना कुछ सहती है
कितना कुछ सहती है
Shweta Soni
शीत की शब में .....
शीत की शब में .....
sushil sarna
Open mic Gorakhpur
Open mic Gorakhpur
Sandeep Albela
चुनाव आनेवाला है
चुनाव आनेवाला है
Sanjay ' शून्य'
वो कुछ इस तरह रिश्ता निभाया करतें हैं
वो कुछ इस तरह रिश्ता निभाया करतें हैं
शिव प्रताप लोधी
"दिल बेकरार रहेगा"
Dr. Kishan tandon kranti
"बदलते भारत की तस्वीर"
पंकज कुमार कर्ण
बेरहम जिन्दगी के कई रंग है ।
बेरहम जिन्दगी के कई रंग है ।
Ashwini sharma
 मैं गोलोक का वासी कृष्ण
 मैं गोलोक का वासी कृष्ण
Pooja Singh
"झूठ और सच" हिन्दी ग़ज़ल
Dr. Asha Kumar Rastogi M.D.(Medicine),DTCD
💐प्रेम कौतुक-182💐
💐प्रेम कौतुक-182💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
बहुमूल्य जीवन और युवा पीढ़ी
बहुमूल्य जीवन और युवा पीढ़ी
Gaurav Sony
कोई आयत सुनाओ सब्र की क़ुरान से,
कोई आयत सुनाओ सब्र की क़ुरान से,
Vishal babu (vishu)
आँखें
आँखें
Neeraj Agarwal
अब तू किसे दोष देती है
अब तू किसे दोष देती है
gurudeenverma198
23/53.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
23/53.*छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
NeelPadam
NeelPadam
नील पदम् Deepak Kumar Srivastava (दीपक )(Neel Padam)
अंदाज़े बयाँ
अंदाज़े बयाँ
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
भावात्मक
भावात्मक
Surya Barman
हर सांझ तुम्हारे आने की आहट सुना करता था
हर सांझ तुम्हारे आने की आहट सुना करता था
Er. Sanjay Shrivastava
दीदार
दीदार
Vandna thakur
समझ ना आया
समझ ना आया
Dinesh Kumar Gangwar
ग़ज़ल
ग़ज़ल
ईश्वर दयाल गोस्वामी
*पचपन का तन बचपन का मन, कैसे उमर बताएँ【हिंदी गजल/गीतिका 】*
*पचपन का तन बचपन का मन, कैसे उमर बताएँ【हिंदी गजल/गीतिका 】*
Ravi Prakash
Change is hard at first, messy in the middle, gorgeous at th
Change is hard at first, messy in the middle, gorgeous at th
पूर्वार्थ
लग जाए गले से गले
लग जाए गले से गले
Ankita Patel
शब्द कम पड़ जाते हैं,
शब्द कम पड़ जाते हैं,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
Loading...