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17 Jan 2017 · 2 min read

जननी जन्म से वंचित क्यों ?

दोहा
गर्भ में नहीं मारिये, जगजननी का रूप I
बिटिया घर को सींचती, पीहर सासुर कूप II

चौपाई
खुशियां मिली झूमना चाहूँ I गर्भ से नभ चूमना चाहूँ II
मानव भ्रूण के अंश में हूँ I मनुष्य के किसी वंश में हूँ II
माँ पाकर आनंदित होती I गर्भ दिखता उमंगित होती II
सारे मिलकर ख़ुशी मनाते I बेटा हो यह गाना गाते II
ख़ुशी घर में टिक नहीं पाई I सोच बेटी की नहीं भाई II
जिज्ञासा ने यह ज्ञान दिया I बेटी होने का भान दिया II
सोच बेटी भयभीत होते I चिंता के वशीभूत होते II
जन्म के पूर्व बात कर्ज की I चिंता दिन रात थी फर्ज की II
ब्याह को धन कैसे जुटेगा I बेटी भाग कैसे जगेगा II
खूब चला घर भर में मंथन I भ्रूण हटा दो सभी का कथन II
माँ यह सुन भयभीत हो गयी I बेटी की मौत सुन खो गयी II
सबके आगे मौन हो गयी I न चाहकर भी गौण हो गयी II
गर्भ में ही दर्द की बारिश I किससे करूँ जीवन गुजारिश II
किस्मत की गागर फूट गयी I जिंदगी की कड़ी टूट गयी II
किसी ने मुझे पूछा होता I बिन विवाह भी जीवन होता II
बेटों सा ही मैं जी लेती I घरवालों के गम पी लेती II
धन की चिंता भी मिट जाती I खूब कमाकर मैं घर लाती II
माँ मुझपर जो यकीन करती I बेटी होकर धन्य समझती II
विचारों में बदलाव होता I गर्भ का बीज यूँ ना रोता II
बिटिया को जो शक्ति समझते I चाहत मारने की न रखते II
कल्पों शिव का त्याग देखिये I जगजननी का भाग देखिये II
जब जगजननी का जन्म हुआ I तब सृष्टि का उद्धार हुआ II
बिन बेटी के वंश न होता I बेटों का भी ब्याह न होता II
कैसा यह उपाय है भाया I जन्म से पूर्व मुझे मिटाया II

दोहा
बेटी को संजोइये, ना करें लिंग भेद I
पड़े ना जताना उसे, गर्भ में यही खेद II

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